१.
अज़ीज़ इतना ही रखो के जी सँभल जाये
अब इस क़दर भी न चाहो के दम निकल जाये
मिले हैं यूँ तो बहुत आओ अब मिलें यूँ भी
के रूह गर्मी-ए-अंफ़ास से पिघल जाये
मुहब्बतों में अजब है दिलों को धड़का सा
के जाने कौन कहाँ रास्ता बदल जाये
रहे वो दिल जो तमन्ना-ए-ताज़ा तर में रहे
ख़ुशा वो उम्र जो ख़्वाबों ही में बहल जाये
मैं वो चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़ार-ए-दुनिया हूँ
जो अपनी ज़ात की तन्हाईयों में जल जाये
हर एक लहजा यही आरज़ू यही हसरत
जो आग दिल में है वो शेर में भी ढल जाये
२.
कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया
मैं कैसा ज़िन्दा आदमी था इक शख़्स ने मुझ को मार दिया
ये सजा सजाया घर साक़ी मेरी ज़ात नहीं मेरा हाल नहीं
ऐ काश कभी तुम जान सको जो उस सुख ने आज़ार दिया
मैं ख़ुली हुई इक सच्चाई मुझे जानने वाले जानते हैं
मैं ने किन लोगों से नफ़्रत की और किन लोगों से प्यार किया
वो इश्क़ बहुत मुश्किल था मगर आसान न था यूँ जीना भी
उस इश्क़ ने ज़िन्दा रहने का मुझे ज़र्फ़ दिया पिन्दार दिया
इक सब्ज़ शाख़ गुलाब की था इक दुनिया अपने प्यार की था
वो एक बहार जो आई नहीं उस के लिये सब कुछ हार दिया
मैं रोता हूँ और आस्मान से तारे टूटते देखता हूँ
उन लोगों पर जिन लोगों ने मेरे लोगों को आज़ार दिया
वो यार हों या महबूब मेरे या कभी कभी मिलने वाले
इक लज़्ज़त सब के मिलने में वो ज़ख़्म दिया या प्यार दिया
३.
बना गुलाब तो काँटें चुभा गया इक शख़्स
हुआ चिराग़ तो घर ही जला गया इक शख़्स
तमाम रन्ग मेरे और सारे ख़्वाब मेरे
फ़साना कह के फ़साना बना गया इक शख़्स
मैं किस हवा में उड़ूँ किस फ़ज़ा में लहराऊँ
दुखों के जाल हर-सू बिछा गया इक शख़्स
पलट सकूँ मैं न आगे बढ़ सकूँ जिस पर
मुझे ये कौन से रास्ते लगा गया इक शख़्स
मुहब्बतें भी अजीब उस की नफ़रतें भी कमाल
मेरी तरह का ही मुझ में समा गया इक शख़्स
वो महताब था मर्हम-ब-दस्त आया था
मगर कुछ और सिवा दिल दुखा गया इक शख़्स
खुला ये राज़ के आईना-ख़ाना है दुनिया
और इस में मुझ को तमाशा बना गया इक शख़्स
४.
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख़्वाब अगर हो जाओ तो क्या
कोई रन्ग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख़्म अगर महकाओ तो क्या
इक आईना था सो टूट गया
अब ख़ुद से अगर शर्माओ तो क्या
मैं तनहा था मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या न आओ तो क्या
जब हम ही न महके फिर साहिब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या
जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या जल जाओ तो क्या
५.
ख़याल-ओ-ख़्वाब हुए हैं मुहब्बतें कैसी
लहू में नाच रहीं हैं ये वहशतें कैसी
न शब को चाँद है अच्छा न दिन को मेहर अच्छा
ये हम पे बीत रही हैं क़यामतें कैसी
अज़ाब जिन का तबस्सुम सवाब जिन की निगाह
खिंची हुई हैं पस-ए-जानाँ सूरतें कैसी
हवा के दोश पे रक्खे हुए चराग़ हैं हम
जो बुझ गये तो हवा से शिकायतें कैसी
जो बेख़बरकोई गुज़रा तो सदा ये दी है
मैं सन्ग-ए-राह हूँ मुझ पर इनायतें कैसी
जो आ रहे सो वो भी अब सन्ग-ओ-ख़िश्त लाता है
फ़ज़ा ये हो तो दिलों की नज़कतें कैसी
६.
तेरे प्यार में रुसवा होकर जाये कहाँ दीवाने लोग
जाने क्या क्या पूछ रहें हैं ये जाने पहचाने लोग
जैसे तुम्हें हमने चाहा था कौन भला यूँ चाहेगा
माना और बहुत आयेंगे तुम से प्यार जताने लोग
कैसे दुखों के मौसम आये कैसी आग लगी यारो
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नज़राने लोग
कल मातम बेक़ीमत होगा आज इनकी तौक़ीर करो
देखो ख़ून-ए-जिगर से क्या क्या लिखते हैं अफ़साने लोग
जानते हैं ये इश्क़ मुसलसल रोग है आह-ओ-ज़ारी का
फिर भी उसके कूचे में जाते हैं उम्र गवाने लोग