अहमद मुश्ताक़. जन्म स्थान, लाहौर, पंजाब, पाकिस्तान. कुछ प्रमुख कृतियाँ, कुल्लियत-ए-अहमद मुश्ताक़, हिज़्र की रात का सितारा
१.
तेरे दीवाने हर रंग रहे, तेरे ध्यान की जोत जगाये हुए।
कभी निथरे-सुथरे कपडों में, कभी अंग भभूत रमाये हुए।
उस राह से छुप-छुप कर गुज़री, रुत सब्ज़ सुनहरे फूलों की,
जिस राह पे तुम कभी निकले थे, घबराए हुए, शरमाये हुए।
अब तक है वही आलम दिल का, वही रंगे-शफ़क़, वही तेज़ हवा,
वही सारा मंज़र जादू का, मेरे नैन-से-नैन मिलाये हुए।
चेहरे पे चमक, आंखों में हया, लब गर्म, खुनक छब, नर्म नवा,
जिन्हें इतने सुकून में देखा था, वही आज मिले घबराए हुए।
हमने 'मुश्ताक' युंही खोला, यादों की किताबे-मुक़द्दस को,
कुछ कागज़ निकले खस्ता से, कुछ फूल मिले मुरझाये हुए।
२.
१.
तेरे दीवाने हर रंग रहे, तेरे ध्यान की जोत जगाये हुए।
कभी निथरे-सुथरे कपडों में, कभी अंग भभूत रमाये हुए।
उस राह से छुप-छुप कर गुज़री, रुत सब्ज़ सुनहरे फूलों की,
जिस राह पे तुम कभी निकले थे, घबराए हुए, शरमाये हुए।
अब तक है वही आलम दिल का, वही रंगे-शफ़क़, वही तेज़ हवा,
वही सारा मंज़र जादू का, मेरे नैन-से-नैन मिलाये हुए।
चेहरे पे चमक, आंखों में हया, लब गर्म, खुनक छब, नर्म नवा,
जिन्हें इतने सुकून में देखा था, वही आज मिले घबराए हुए।
हमने 'मुश्ताक' युंही खोला, यादों की किताबे-मुक़द्दस को,
कुछ कागज़ निकले खस्ता से, कुछ फूल मिले मुरझाये हुए।
२.
कहाँ की गूँज दिले-नातवाँ में रहती है।
कि थरथरी सी अजब जिस्मो-जाँ में रहती है।
मज़ा तो ये है कि वो ख़ुद तो है नये घर में,
और उसकी याद पुराने मकाँ में रहती है।
अगरचे उससे मेरी बेतकल्लुफ़ी है बहोत,
झिजक सी एक मगर दर्मियाँ में रहती है।
पता तो फ़स्ले-गुलो-लाला का नहीं मालूम,
सुना है कुर्बे-दयारे-खिज़ाँ में रहती है।
मैं कितना वहम करूँ लेकिन इक शुआए-यकीं,
कहीं नवाहे-दिले - बद-गुमाँ में रहती है।
हज़ार जान खपाता रहूँ मगर फिर भी,
कमी सी कुछ मेरे तर्जे-बयाँ में रहती है।