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सन्देश

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और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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रविवार, 12 मई 2013

सौरभ पाण्डेय के दोहे

१.


आप सदा से आप हैं, कहें, कहूँ क्या आप
मौसम रंजन आपको, मुझको मौसम शाप ||1||

चंपा चढ़ी मुँडेर पर, गद-गद हुआ कनेर
झरते हरसिंगार बिन, बचपन हुआ कुबेर ||2||

मौसम की पाती पढ़े, फटी-फटी है आँख
खिड़की-साँकल तौलतीं, उसके रोमिल पाँख ||3||

मेरे मौसम को नहीं, हुआ तत्त्व का बोध
षड्-दर्शन हाँका किये, बना रहा गतिरोध ||4||

फटी बिवाई देख कर, चिंतित दीखी राह
मौसम-मौसम धूल में, पत्थर तोड़े ’आह’ ||5||

झींसी-झीसीं ताप दे, फव्वारे-सी ठंढ
दीखे चुप, दुर्भेद सी, भीतर प्यास प्रचंड ||6||

मौसम पर गर्मी चढ़ी, कसती गाँठें-छोर
स्वप्न स्वेद में भीगते, मींजें नस-नस पोर ||7||

मन की ड्यौढ़ी आर्द्र है, घिरे मेघ घनघोर
प्रेम-पचासा टेरता, मौसम है मुँहजोर ||8||

मुँदे-मुँदे से नैन चुप, अलसायी-सी देह
मौसम बेमन लेपता, उर्वर मन पर रेह ||9||

मन की बंद किताब पर, मौसम धरता धूल
पन्ने-पन्ने याद हैं, तुम अक्षर, तुम फूल ||10||

कामद-पल धनु बाण ज्यों, प्रत्यंचा उत्साह
गर्व अड़ा आखेट को, मद आँखों की राह ||11||

२.


प्रकृति के उद्येश्य और दर्शन के मत एक ।
सुत-कन्या आधार-बल, राखी मध्य विवेक ॥

राखी बस धागा नहीं, उन्नत भाव प्रतीक ।
गर्वीले भाई रखें, बहना को निर्भीक ॥

नाजुक धागा भर नहीं, राखी है विश्वास ।
सात्विकता संदर्भ ले, धर्म-कर्म-सुख-आस ॥

मान रखो, हे माधवा, तारो हर दुख-ताप ।
ज्यौं बाँधे राजा बली, त्यौं मैं बाँधूँ आप ॥

एक बहन कर्णावती, कुँवर हुमायूँ एक ।
मुँहबोली आक्रांत जब, पंथ रहा ना टेक ॥

भाई बल परिवार का, तो बहना शृंगार ।
कठिन समय दुर्दम्य पल, मिलजुल हो उद्धार ॥

रिश्ता सुगम बनाइये, मध्य न आवे देह ।
बेटी-बेटे रत्न दो, दोनों पर सम-स्नेह ॥

छायी हो हरसूँ खुशी, हों रिश्ते मज़बूत ।
घर-घर में किलकारते दीखें बेटी-पूत ॥

राखी भरी कलाइयों के हैं अर्थ सटीक ।
लीक छोड़ भाई चलें, बहना खींचे लीक ॥

नन्हें-नन्हें हाथ में नन्हीं राखी बाँध ।
मुँह मीठा बहना करे - "मेरा भाई चाँद" ॥

बाबू सोचे क्या करूँ, क्या दूँ राखी गिफ़्ट ?
दोनों दीदी के लिये माँ-दादी से लिफ़्ट !!

जबसे बहना जा बसी जहाँ बसे घनश्याम ।
राखी बिना कलाइयाँ तबसे उसके नाम ॥

मेरे मन की मान थी, मन की ईश सुनाम ।
मन से मन को तारती, बहना याद तमाम ॥