जन्म : १८ जुलाई, १९६२ को कानपुर
में,बाल गीत संग्रह "ताक धिना धिन" तथा 'लिये लुकाठी हाथ' प्रकाशित।कहो सदाशिव’ नवगीत संग्रह पर उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला सम्मान से
सम्मानित।
१.
जला स्वयं की आग में, राहत का सामान
बादल भागे छोड़कर, जलता
हुआ मकान.
आँखों में रौनक नहीं, नहीं डाल पर फूल
नई पौध है पढ़ रही,
इतिहासों की भूल.
आड़े तिरछे रास्ते, रेखाओं के जाल
बूढ़े
सपने क्या करें, छोड़ रहे हैं छाल.
केला बिस्कुट संतरा, गुड्डा-गुड़िया गेंद
सब कुछ गायब हो
गया, किसने मारी सेंध.
| |
हर लमहा ज्वरग्रस्त है, हर लमहा है ज्वार
दाढ़ी चोटी सल्तनत,
धरा धर्म अख़बार.
कदम-कदम पर ज़िंदगी, दर्द रही है झेल
ज्यों सुरंग के बीच से,
गुज़र रही है रेल.
ये कैसी बारीकियाँ, कैसा तंज़ महीन
हम बोले मर जाएँगे, वो
बोले आमीन.
हमें पता क्या वक़्त की, कितनी मोटी खाल
वृत्त बनाते रह गए,
संबंधों के ताल.
कितना छोटा हो गया, अपना घर संसार
शीशे में बौना लगे, अपना
ही आकार.
चिनगारी के बीज से, उगा आग का पेड़
आँखें करती ही रहीं,
सपनों से मुठभेड़.
सौ सूरज से सज गई, मन की अंधी खोह
सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ा,
साँसों का अवरोह.
उनकी कैसी ज़िंदगी, ज्यों चाहें निर्वाण
जो जीना हैं जानते,
खोलें बंद किवाड़.
अंक गणित सी ज़िंदगी, पढ़े पहाड़ा रोज़
अपने ही धड़ पर लगे,
अपना यह सिर बोझ.
भले बजाई थी कभी, यहाँ ईंट से ईंट
बड़े-बड़े दिखला रहे, अब
युद्धों में पीठ.
झूठा पड़ता जा रहा, ज्योतिष और खगोल
कदम-कदम भूकंप है,
कदम-कदम भूडोल.
अख़बारों की आँख में, अफ़वाहों की आग
कदम-कदम पर जागता,
जलियावाला बाग़.
कौन भला दे भोर के, पंछी को आवाज़
पिंजरे में है रोशनी, बाहर
है परवाज़.
ख़ाली-ख़ाली पेट हैं, चक्कर खाती शाम
सुबह मिली दम तोड़ती,
भरे-भरे गोदाम.
| |
डूब रहे हैं आदमी, तैर रही पतवार
दर्द पुराने क्या करे,
नई-नई सरकार.
आपस में करने लगीं, किरने क्रूर सलाह
बड़े सवेरे हो गया,
सूरज तानाशाह.
रचने को रच ही लिया, हमने नया समाज
भूख निगोड़ी क्या करे,
माँगे पेट अनाज.
फँसी गले में रह गई, कोयलिया की कूक
दाएँ भी बंदूक थी ,बाएँ
भी बंदूक.
परजा के मुँह पर पड़ा, ताला खोले कौन
राजा के दरबार के,
दरवाज़े हैं मौन.
धुआँ करेगा आँख का, धधकेंगे अंगार
धारदार होंगे यही, जंग लगे
हथियार.
चूल्हा है ठंडा पड़ा, चूहे खेलें खेल
दियासलाई ऊँघती, गुम
मिट्टी का तेल.
दरवाज़े पर रोकते, महामहिम के गार्ड
आम आदमी का भला, कैसा
विज़िटिंग कार्ड.
शहरों में पुजने लगे, पूँजीपति के पाँव.
ढूँढ़े से मिलता
नहीं, प्रेमचंद का गाँव.
चलती चक्की देखकर, नहीं जागती पीर
दर्द जुलाहे का कहे, कोई
नहीं कबीर.
२.
पानी दिखता ही नहीं, पाया कारावास।
होठों पर जलने लगी, अंगारों सी प्यास।।
पीने की खातिर बचे, मिट्टी–बालू–रेत।
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत।।
गरम टीन सा तप रहा, हर कोमल एहसास।
कोलतार पिघला मिला, सड़कें मिली उदास।।
प्यासी है सारी प्रजा, सोया है सम्राट।
अग्निकुंड से हो गए, पानी वाले घाट।।
गरम धूल आँखों भरी, भरा न कोई घाव
सीधे मँुह अब क्या कहें , औंधे मँुह की नाव।।
आपस में करने लगीं, किरणें क्रूर सलाह।
बड़े सवेरे हो गया, सूरज तानाशाह।।
होठों पर जलने लगी, अंगारों सी प्यास।।
पीने की खातिर बचे, मिट्टी–बालू–रेत।
मौन कुएँ के सामने, पंछी पड़ा अचेत।।
गरम टीन सा तप रहा, हर कोमल एहसास।
कोलतार पिघला मिला, सड़कें मिली उदास।।
प्यासी है सारी प्रजा, सोया है सम्राट।
अग्निकुंड से हो गए, पानी वाले घाट।।
गरम धूल आँखों भरी, भरा न कोई घाव
सीधे मँुह अब क्या कहें , औंधे मँुह की नाव।।
आपस में करने लगीं, किरणें क्रूर सलाह।
बड़े सवेरे हो गया, सूरज तानाशाह।।
३.
बारिश के दिन आ गए हँसे खेत खपरैल
एक हँसी मे धुल गया मन का सारा मैल
अबरोही बादल भरें फिर घाटी की गोद
बजा रहे हैं डूब कर अमजद अली सरोद
जब से आया गाँव में यह मौसम अवधूत
बादल भी मलने लगे अपने अंग भभूत
बदली हँसती शाम से मुँह पर रख रूमाल
साँसो में सौगंध है आँखें हैं वाचाल
बादल के लच्छे खुले पेड़ कातते सूत
किसी बात का फिर हवा देने लगी सबूत
कठिन गरीबी क्या करे अपना सरल स्वाभाव
छत से पानी रिस रहा जैसे रिसता घाव
मीठे दिन बरसात के खट्टी मीठी याद
एक खुशी के साथ हैं सौ गहरे अवसाद
बिजली चमके रात भर आफ़त में है जान
मैला आँचल भीगता सीला है गोदान
सासों में आसावरी आँखो में कल्यान
सहे किस तरह हैसियत बूँदो वाले बान
एक हँसी मे धुल गया मन का सारा मैल
अबरोही बादल भरें फिर घाटी की गोद
बजा रहे हैं डूब कर अमजद अली सरोद
जब से आया गाँव में यह मौसम अवधूत
बादल भी मलने लगे अपने अंग भभूत
बदली हँसती शाम से मुँह पर रख रूमाल
साँसो में सौगंध है आँखें हैं वाचाल
बादल के लच्छे खुले पेड़ कातते सूत
किसी बात का फिर हवा देने लगी सबूत
कठिन गरीबी क्या करे अपना सरल स्वाभाव
छत से पानी रिस रहा जैसे रिसता घाव
मीठे दिन बरसात के खट्टी मीठी याद
एक खुशी के साथ हैं सौ गहरे अवसाद
बिजली चमके रात भर आफ़त में है जान
मैला आँचल भीगता सीला है गोदान
सासों में आसावरी आँखो में कल्यान
सहे किस तरह हैसियत बूँदो वाले बान