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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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सोमवार, 13 जून 2022

देवेश दीक्षित 'देव' जी के दोहे




परिचय:

देवेश दीक्षित 'देव'
कायमगंज फर्रुखाबाद(उ.प्र.)
8707473308
******************************************************************************
(1) भीग रही फिरि-फिरि कहीं,सागर तट की रेत।
प्यासे बैठे हैं यहाँ, सारे सूखे खेत।।


(2) जून जुलाई मार्च हो, या फिर मई अगस्त।
हर मौसम में सम रहे, हम फ़कीर अलमस्त।।


(3) दसों दिशाओं में खिला,जब बसंत का रूप।
इठलाती-सी फिर रही, बाग़-बगीचे धूप।।


(4) बाग़-बगीचे रो दिए, हिचकी भरी दिगंत।
पता चला जब छोड़कर, जाने लगा बसंत।।


(5) बिखर गयीं सब पंखुरीं, क्षीण हुआ मकरंद।
टूटा जिस दिन डाल से, फूलों का संबंध।।


(6) हरा मुसलमां हो गया, भगवा हिन्दू रंग।
छिड़ी हुई है आजकल, रंगों पर भी जंग।।


(7) किया भीष्म ने हर दफ़ा,अर्जुन का जयघोष।
बाण-बाण में मिल रहा, हो जैसे परितोष।।


(8) साथ तुम्हारे किस तरह, होता भला निभाव।
तुम चेहरा पढ़ते रहे, पढ़े न दिल के भाव।।


(9) रहा छुपाए अंत तक, दिल में सब संताप।
बेटी को करके विदा, छुप-छुप रोया बाप।।


(10) शादी में हावी रहा, माँग-पत्र अनुबंध।
रिश्तों के व्यापार को, कौन कहे संबंध।।


(11) धीरे-धीरे प्यार के, पाठ रहे सब भूल।
जहाँ-तहाँ जबसे खुले, नफ़रत के स्कूल।।


(12) कैसे उसकी वेदना, समझ सकेंगे आप।
मिला जिसे वरदान की, चाहत में अभिशाप।।


(13) शर्मीली कलियाँ सभी, खिलकर हुईं निहाल।
तरुणाई में छू लिए, जब बसंत ने गाल।।


(14) फूल कली तितली भ्रमर, सबकी दशा विचित्र।
यूँ बदला ऋतुराज ने, सबका चाल चरित्र।।


(15) क्या समझूँ सौभाग्य अब, क्या समझूँ दुर्भाग्य।
मन चिंतन में आ बसा,जब ख़ुद ही दुर्भाग्य।।

धन्यवाद,

गुरुवार, 26 मार्च 2020

डॉ. श्यामगुप्त

लेखक परिचय
नाम— डा. श्यामगुप्त
पिता—स्व.श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता, माता—स्व.श्रीमती रामभेजी देवी, 
पत्नी—श्रीमती सुषमा गुप्ता एम.ए.(हि.).
जन्म— १० नवम्बर,१९४४ ई....ग्राम-मिढाकुर, जि. आगरा, उ.प्र.  भारत ..
शिक्षा—एम.बी.,बी.एस.,एम.एस.(शल्य), सरोजिनी नायडू चिकित्सा महाविद्यालय,आगरा.
व्यवसाय-चिकित्सक (शल्य)-उ.रे.चिकित्सालय, लखनऊ से व.चि.अधीक्षक पद से सेवा 
निवृत ।
साहित्यिक-गतिविधियां--विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से संबद्ध, काव्य की सभी 
विधाओं—कविता,गीत,अगीत,गद्य-पद्य, निबंध, कथा-कहानी-उपन्यास, आलेख, समीक्षा 
आदि में लेखन। ब्लोग्स व इन्टर्नेट पत्रिकाओं में लेखन.
भावानुवाद.....
मेरे ब्लोग्स( इन्टर्नेट-चिट्ठे)—श्याम स्मृति 
(http://shyamthot.blogspot.com), साहित्य श्याम, अगीतायन, छिद्रान्वेषी, 
विजानाति-विजानाति-विज्ञान एवं हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान...
सम्मान आदि—
१.न.रा.का.स.,राजभाषा विभाग,(उ प्र) द्वारा राजभाषा सम्मान (काव्य संग्रह 
काव्यदूत व काव्य-निर्झरिणी हेतु).
२.अभियान जबलपुर संस्था (म.प्र.) द्वारा हिन्दी भूषण सम्मान( महाकाव्य 
‘सृष्टि’ हेतु )
३.विन्ध्यवासिनी हिन्दी विकास संस्थान, नई दिल्ली द्वारा बावा दीप सिन्घ 
स्मृति सम्मान,
४.अ.भा.अगीतपरिषद द्वारा-श्री कमलापति मिश्र सम्मान व अ.भा.साहित्यकार दिवस पर 
प.सोहनलाल द्विवेदी सम्मान|
५. अ.भा.अगीत परिषद द्वारा अगीत-विधा महाकाव्य सम्मान( अगीत-विधा महाकाव्य 
सृष्टि हेतु)
६.जाग्रति प्रकाशन, मुम्बई द्वारा-साहित्य-भूषण एवं पूर्व पश्चिम गौरव सम्मान,
७.इन्द्रधनुष सन्स्था बिज़नौर द्वारा..काव्य-मर्मज्ञ सम्मान.
८.छ्त्तीसगढ शिक्षक साहित्यकार मंच, दुर्ग द्वारा-हिरदे कविरत्न सम्मान,
९.युवा कवियों की सन्स्था; ’सृजन’’ लखनऊ द्वारा महाकवि सम्मान एवं सृजन-साधना 
वरिष्ठ कवि सम्मान.
१०.शिक्षा साहित्य व कला विकास समिति,श्रावस्ती द्वारा श्री ब्रज बहादुर पांडे 
स्मृति सम्मान
११.अ.भा.साहित्य संगम,उदयपुर द्वारा राष्ट्रीय-प्रतिभा-सम्मान व शूर्पणखा 
काव्य-उपन्यास हेतु 'काव्य-केसरी' उपाधि |
१२. जगत सुन्दरम कल्याण ट्रस्ट द्वारा महाकवि जगत नारायण पांडे स्मृति सम्मान.
१३. बिसारिया शिक्षा एवं सेवा समिति, लखनऊ द्वारा ‘अमृत-पुत्र पदक
१४. कर्नाटक हिन्दी प्रचार समिति, बेंगालूरू द्वारा सारस्वत सम्मान(इन्द्रधनुष 
–उपन्यास हेतु)
१५.विश्व हिन्दी साहित्य सेवा संस्थान,इलाहाबाद द्वारा 
‘विहिसा-अलंकरण’-२०१२....आदि..
१६.युवा रचनाकार मंच द्वारा डा अनंत माधव चिपलूणकर स्मृति सम्मान -२०१५
१७.साहित्यामंडल श्रीनाथ द्वारा –द्वारा हिन्दी साहित्य विभूषण सम्मान
१८.लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा ‘डा श्यामगुप्त के व्यक्तित्व व कृतित्व’ पर शोध 
|
१९ .साहित्यामंडल श्रीनाथ द्वारा –द्वारा हिन्दी साहित्य विभूषण की उपाधि २०१५
२०.अंतर्जाल पर साहित्य रचना हेतु डा.रसाल स्मृति शोध संस्थान द्वारा रवीन्द्र 
शुक्ल स्मृति पुरस्कार
२१.अखिल भारतीय मतदाता परिषद् द्वारा समाज भूषण सम्मान २०१७.
२२. नव सृजन संस्था लखनऊ द्वारा साहित्याचार्य की उपाधि २०१७ |
२३, .  नव सृजन साहित्यिक संस्था लखनऊ द्वारा साहित्य मार्तंड सम्मान २०२० ..
विशेष --अ.भा.अगीत परिषद् एवं नव-सृजन सा.सा. संस्था लखनऊ द्वारा -अमृत कलश –
डा श्याम गुप्त अभिनन्दन ग्रन्थ  का प्रकाशन २०१९
               प्रकाशित कृतियां--- काव्य-दूत, काव्य निर्झरिणी, 
काव्यमुक्तामृत (सभी काव्य-संग्रह), सृष्टि - अगीत विधा महाकाव्य, प्रेम 
काव्य—गीति-विधा महाकाव्य, शूर्पणखा-अगीत-विधा काव्य-उपन्यास, इन्द्रधनुष 
उपन्यास --नारी विमर्श पर एवं अगीत विधा कविता के विधि-विधान पर 
शास्त्रीय-ग्रन्थ "अगीत साहित्य दर्पण,  ब्रजभाषा में काव्य संग्रह 
‘ब्रजबांसुरी’ एवं  शायरी संग्रह ‘कुछ शायरी की बात होजाए’ अगीत-त्रयी, तुम 
तुम और तुम (गीत संग्रह) ईशोपनिषद का काव्य-भावानुवाद, काव्य कंकरियाँ ई बुक 
एवं पीर ज़माने की  अदि १५ कृतियाँ प्रकाशित हैं|


पता—  डा श्याम गुप्त,  सुश्यानिदी, के-३४८, आशियाना,लखनऊ-( उ.प्र. भारत 
)-२२६०१२ .
 मो. ०९४१५१५६४६४   email—drgupta04@gmail.com,   
drshyamgupta44@gmail.com

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ग़ज़लें

१. उस फ़साने को...

  आज लो छेड़ ही देते हैं उस फ़साने को,
तेरी चाहत में थे हाज़िर ये दिल लुटाने को |

आज फिर जाने क्यूं, जाने क्यूं, न जाने क्यूं,
याद करता है दिले-नादां उस ज़माने को |

जाने क्यूं आज फिर से ये दिल की धड़कन,
तेरी चाहत की वो धुन चाहे गुनुगुनाने को |

तेरी गलियों में न जाने क्यों, न जाने क्यूं,
फेरे लगते थे तेरी एक झलक पाने को |

जाने क्यूं रूह, जिगर, जिस्म और जानो-अदा,
रहते हाज़िर तेरी चाहत में सिर झुकाने को |

अब तो चाहों ने भी मुख फेर लिया है हमसे,
दोष दें खुद को या तुझ को कि इस ज़माने को |

तुमको हम याद करें भी तो भला कैसे करें,
हम तो भूले ही नहीं आपके फ़साने को |

चाहतों की भी तो श्याम’उम्र होती है कोइ,
उम्र की बात भी होती है क्या सुनाने को ||

२.तेरी तो हर बात ग़ज़ल

तेरे दिन और रात ग़ज़ल,
तेरी तो हर बात ग़ज़ल |

प्रेम-प्रीति  की रीति ग़ज़ल,
मुलाक़ात की बात ग़ज़ल |

मेरे यदि नग्मात ग़ज़ल,
तेरी हर आवाज़ ग़ज़ल |

तेरे दर का फूल ग़ज़ल,
पात पात हर पात ग़ज़ल |

हमें भुलादो बने ग़ज़ल,
यादों की बरात ग़ज़ल |

तू हंसदे होजाय  ग़ज़ल,
अश्क अश्क हर अश्क ग़ज़ल |

तेरी शह की बात ग़ज़ल,
मुझको तेरी मात ग़ज़ल |

तू हारे तो क़यामत हो,
तेरी जीत की बात ग़ज़ल |

हंस देख कर शरमाये,
चाल तेरी क्या बात ग़ज़ल |

मेरी बात पे मुस्काना,
तेरे ये ज़ज्बात ग़ज़ल |

इठलाकर लट खुल जाना ,
तेरा  हर अंदाज़ ग़ज़ल |

तेरी ग़ज़लों पर मरते ,
कैसी सुन्दर घात ग़ज़ल |

श्याम' सुहानी ग़ज़लों पर ,
तुझको देती दाद ग़ज़ल ||

      ३. उस गुलाबी धूप का..

इक शमा यादों की मन में चाह बन जलती रही,
फिर मुलाकातें भी होंगीं आस इक पलती रही |

उस गुलाबी धूप का क्या वाकया कोई कहे,
जो हमारे आपके थी दरमियाँ छलकी रही |

रूह में छाई हुई इक धुंध वर्फीली उसे,
गुनगुनाया वो पिघलकर गीत बन ढलती रही |

क्या कहें क्या ना हुआ अब उस सुहानी शाम को,
नयन नयनों में ही बातें नेह की चलती रहीं |

नयन नयनों से मुखातिब हुए तो ये क्या हुआ,
मौन की मधुरिम मुखरता रूह में फलती रही |

गुनुगुनाने लग गए कलियाँ बहारें चमन सब,
शोखियाँ अठखेलियाँ तन मन को यूं छलती रहीं |

धूप अपने दरमियां जो उस अजानी शाम थी,
नयन से होठों पे आने से सदा टलती रही |

आ न पायी नयन से ओठों पे वो धुन प्रीति की
श्याम’ इक मीठी व्यथा बन हाथ यूं मलती रही ||

     ४.प्यार के पल की खातिर


वो एक पल का हसीं पल भी था क्या पल आखिर,

वो हंसीं पल था तेरे प्यार के पल की खातिर|

दर्द की एक चुभन सी है सुलगती दिल में,
प्यास ऐसी कि चले सहरा को जल की खातिर |

ये क्या हमने किया आप को चाहा हमने,
दर्द का जाम पिया, दर्दे-हल की खातिर |

आप आयें या न आयें हमारे साथ मगर,
जब पुकारोगे चले आयेंगे दिल की खातिर |

याद आयें तो वही लम्हे-वफ़ा जी लेना,
गम न करना कभी उस प्यार के पल की खातिर |

साथ तुम हो या न हो सामने आयें जब श्याम,
मुस्कुरा देना उसी प्यार के पल की खातिर ||



५. पीर ज़माने की....

उसमें घुसने की मुझको ही मनाही है |
दरो दीवार जो मैंने ही बनाई है |

मैं ही सज़दे के काबिल नहीं उसमें,
ईंट दर ईंट मस्जिद मैंने ही चिनाई है |

पुस्तक के पन्नों मे उसी का ज़िक्र नहीं ,
पन्नों पन्नों ढली वो बेनाम स्याही है |

लिख दिए हैं ग्रंथों पर किस किस के नाम,
अक्षर अक्षर तो कलम की लिखाई है |

गगन चुम्बी अटारियों पर है सब की नज़र,
नींव के पत्थर की सदा किसको सुहाई है |

सज संवर के इठलाती तो हैं इमारतें पर,
अनगढ़ पत्थरों की पीर नींव में समाई है |

वो दिल तो कोई दिल ही नहीं जिसमें,
भावों की नहीं बजती शहनाई है |

इस सूरतो-रंग का क्या फ़ायदा श्याम,
जो मन नहीं पीर ज़माने की समाई है ||

६.--दलदल ...

बड़े शौक से आये थे कुछ काम करेंगे |
सेवा करेंगे देश की कुछ नाम करेंगे |

गन्दला गयी है राजनीति इस देश की,
कुछ पाक साफ़ करेंगे, जब काम करेंगे |

काज़ल की कोठरी है, हम जानते थे खूब,
इक लीक तो लगेगी पर नाम करेंगे |

सब दुश्मनों से हम तो, हरदम थे खबरदार,
जाना नहीं था अपने ही बदनाम करेंगे |

वो साथ भी चले नहीं और खींच लिए पाँव,
था भरोसा कि साथ कदम ताल करेंगे |

सच की ही राह चलते रहे हम तो उम्र भर ,
राहें बदल कर क्या नया मुकाम करेंगे |

हर शाख ही यहाँ की है उलूकों के हवाले,
बदलें जो ठांव अब क्या नया धाम करेंगे

बैठे हैं गिद्ध चील कौवे हर डाल पर ,
व्याख्यान देते श्वान गधे गान करेंगे |

इतना है दलदल कोइ कहाँ बैठे खडा हो,
कीचड़ से लथपथ होगये क्या काम करेंगे |

दलदल से बाहर कैसे आयें सोच रहे श्याम ,
सारा ही इंतजाम अब तो राम करेंगे ||