परिचय:
जन्म: हस्तीमल हस्ती का जन्म 11मार्च 1946 को आमेट, जिला राजसमन्द राजस्थान में हुआ.
प्रमुख कृतियाँ :इस शायर के दो गज़ल संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं- 1-क्या कहें किससे कहें [महाराष्ट्र हिन्दी साहित्य अकादमी से पुरष्कृत 2-कुछ और तरह से भी [अम्बिका प्रसाद दिव्य पुरष्कार से सम्मानित ]
सम्पर्क: ई मेल- hastiji(at)gmail.com
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१.
चराग़ हो के नहो दिल जला केरखते हैं
हम आँधियों में भीतेवर बला के रखतेहैं
मिला दिया है पसीनाभले ही मिट्टी में
हम अपनी आँख कापानी बचा के रखतेंहैं
कहीं ख़ूलूस कहींदोस्ती कहीं पे वफ़ा
बड़े करीने से घरको सजा के रखतेहैं
अना पसंद है हस्ती जी सच सही लेकिन
नज़र को अपनी हमेशा झुका के रखते हैं
२.
जिसको सुकून कह्ते हैंअक्सर नहीं मिला
नींदें नहीं मिली कभीबिस्तर नहीं मिला
दहलीज़ अपनी छोड़ दीजिसने भी एक बार
दीवारों-दर ही उसकोमिले घर नहीं मिला
सारी चमक हमारे पसीनेकी है जनाब
विरसे में हमको कोईभी ज़ेवर नहीं मिला
३.
उसके दिल में कोई दग़ा हो तो
तुझको ही वहम हो गया हो तो
जिस को रहबर बना लिया हमने
उसका रहज़न से राबता हो तो
जिस को तन्हा समझ रहे हैं हम
ख़ुद में वो एक काफ़िला हो तो
काँटा ही काम आएगा प्यारे
काँटा कोई निकालना हो तो
तू समझता है थक गया हस्ती
वो तेरे वास्ते रुका हो तो
४.
प्यार का पहला खत लिखने में वक्त तो लगता है
नये परिंदों को उड़ने में वक्त तो लगता है
जिस्म की बात नहीं थी उनके दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है
गाँठ अगर लग जाये तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक्त तो लगता है
हमने इलाजे जख्में दिल का ढूंढ लिया लेकिन
गहरे जख्मों को भरने में वक्त तो लगता है
५.
५.
खुशनुमाई देखना ना क़द किसी का देखना
बात पेड़ों की कभी आये तो साया देखना
खूबियाँ पीतल में भी ले आती हैं कारीगरी
जौहरी की आँख से हर एक गहना देखना
झूठ के बाज़ार में ऐसा नजर आता है सच
पत्थरों के बाद जैसे कोई शीशा देखना
जिंदगानी इस तरह है आजकल तेरे बगैर
फासले से जैसे कोई मेला तनहा देखना
देखना आसां है दुनियाँ का तमाशा साहबान
है बहुत मुश्किल मगर अपना तमाशा देखना
६.
सबकी सुनना ,अपनी करना
प्रेम नगर से जब भी गुजरना
अनगिन बूंदों में कुछ को ही
आता है फूलों पे ठहरना
बरसों याद रक्खें ये मौजें
दरिया से यूँ पार उतरना
फूलों का अंदाज सिमटना
खुशबू का अंदाज बिखरना
अपनी मंज़िल ध्यान में रखकर
दुनियाँ की राहों से गुजरना
७.
झील का बस एक कतरा ले गया
क्या हुआ जो चैन दिल का ले गया
मुझसे जल्दी हारकर मेरा हरीफ़
जीतने का लुत्फ़ सारा ले गया
एक उड़ती सी नज़र डाली थी बस
वो न जाने मुझसे क्या -क्या ले गया
देखते ही रह गये तूफान सब
खुशबुओं का लुत्फ़ झोंका ले गया
८.
उससे मिल आये हो लगा कुछ कुछ
आज ख़ुद से हो तुम जुदा कुछ कुछ
दिल किसी का दुखा दिया मैंने
ज़िन्दगी मुझसे है खफ़ा कुछ कुछ
मेरी फ़ितरत में सच रहा शामिल
अपना दुश्मन ही मैं रहा कुछ कुछ
आग पी कर भी रोशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ कुछ
उलझे धागों से हमने समझा है
ज़िन्दगानी का फ़लसफ़ा कुछ कुछ
आज ख़ुद से हो तुम जुदा कुछ कुछ
दिल किसी का दुखा दिया मैंने
ज़िन्दगी मुझसे है खफ़ा कुछ कुछ
मेरी फ़ितरत में सच रहा शामिल
अपना दुश्मन ही मैं रहा कुछ कुछ
आग पी कर भी रोशनी देना
माँ के जैसा है ये दिया कुछ कुछ
उलझे धागों से हमने समझा है
ज़िन्दगानी का फ़लसफ़ा कुछ कुछ
९.
सबका यही ख़्याल कभी था पर अब नहीं
इंसान इक मिसाल कभी था पर अब नहीं
पत्थर भी तैर जाते थे तिनकों की ही तरह
चाहत में वो कमाल कभी था पर अब नहीं
क्यों मैंने अपने ऐब छिपा कर नहीं रखे
इसका मुझे मलाल कभी था पर अब नहीं
क्या होगा कायनात का गर सच नहीं रहा
हर दिल में ये ख़्याल कभी था पर अब नहीं
क्यों दूर-दूर रहते हो पास आओ दोस्तों
ये ‘हस्ती’ तंग-हाल कभी था पर अब नहीं
इंसान इक मिसाल कभी था पर अब नहीं
पत्थर भी तैर जाते थे तिनकों की ही तरह
चाहत में वो कमाल कभी था पर अब नहीं
क्यों मैंने अपने ऐब छिपा कर नहीं रखे
इसका मुझे मलाल कभी था पर अब नहीं
क्या होगा कायनात का गर सच नहीं रहा
हर दिल में ये ख़्याल कभी था पर अब नहीं
क्यों दूर-दूर रहते हो पास आओ दोस्तों
ये ‘हस्ती’ तंग-हाल कभी था पर अब नहीं
१०.
काम करेगी उसकी धार
बाकी लोहा है बेकार
कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे आगे यार
बाकी लोहा है बेकार
कैसे बच सकता था मैं
पीछे ठग थे आगे यार
बोरी भर मेहनत पीसूँ
निकले इक मुट्ठी भर सार
भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार
जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हजार
सारे तुगलक चुन चुनकर
हमने बनाई है सरकार
शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार
निकले इक मुट्ठी भर सार
भूखे को पकवान लगें
चटनी, रोटी, प्याज, अचार
जीवन है इक ऐसी डोर
गाठें जिसमें कई हजार
सारे तुगलक चुन चुनकर
हमने बनाई है सरकार
शुक्र है राजा मान गया
दो दूनी होते हैं चार
प्यार वो शै है हस्ती जी
जिसके चेहरे कई हजार
जिसके चेहरे कई हजार
११.
कितनी मुश्किल उठानी पड़ी
जब हक़ीक़त छुपानी पड़ी
शर्म आती है ये सोच कर
दोस्ती आजमानी पड़ी
हर मसीहा को हर दौर में
सच की क़ीमत चुकानी पड़ी
जो थी मेरी अना के ख़िलाफ़
रस्म वो भी निभानी पड़ी
रास्ते जो दिखाता रहा
राह उसको बतानी पड़ी
थी हर इक बात जिस बात से
बात वो भी भुलानी पड़ी
जब हक़ीक़त छुपानी पड़ी
शर्म आती है ये सोच कर
दोस्ती आजमानी पड़ी
हर मसीहा को हर दौर में
सच की क़ीमत चुकानी पड़ी
जो थी मेरी अना के ख़िलाफ़
रस्म वो भी निभानी पड़ी
रास्ते जो दिखाता रहा
राह उसको बतानी पड़ी
थी हर इक बात जिस बात से
बात वो भी भुलानी पड़ी
१२.
कौन है धूप सा छाँव सा कौन है
मेरे अन्दर ये बहरूपिया कौन है
बेरूख़ी से कोई जब मिले सोचिये
द्श्त में पेड् को सींचता कौन है
झूठ की शाख़ फल फूल देती नहीं
सोचना चाहिए सोचता कौन है
आँख भीगी मिले नींद में भी मेरी
मुझमें चुपचाप ये भीगता कौन है
अपने बारे में ‘हस्ती’ कभी सोचना
अक्स किसके हो तुम आईना कौन है
मेरे अन्दर ये बहरूपिया कौन है
बेरूख़ी से कोई जब मिले सोचिये
द्श्त में पेड् को सींचता कौन है
झूठ की शाख़ फल फूल देती नहीं
सोचना चाहिए सोचता कौन है
आँख भीगी मिले नींद में भी मेरी
मुझमें चुपचाप ये भीगता कौन है
अपने बारे में ‘हस्ती’ कभी सोचना
अक्स किसके हो तुम आईना कौन है
१३.
टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको
मेरी खुशबू भी मर न जाय कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको
एक भगवे लिबास का जादू
सब समझते हैं पारसा मुझको
अक़्ल कोई सजा़ है या ईनाम
बारहा सोचना पडा़ मुझको
हुस्न क्या चन्द रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको
कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको
मेरी ताक़त न जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको
आपका यूँ करीब आ जाना
मुझसे और दूर ले गया मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको
मेरी खुशबू भी मर न जाय कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको
एक भगवे लिबास का जादू
सब समझते हैं पारसा मुझको
अक़्ल कोई सजा़ है या ईनाम
बारहा सोचना पडा़ मुझको
हुस्न क्या चन्द रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको
कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको
मेरी ताक़त न जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको
आपका यूँ करीब आ जाना
मुझसे और दूर ले गया मुझको
१४.
सच कहना और पत्थर खाना पहले भी था आज भी है
बन के मसीहा जान गँवाना पहले भी था आज भी है
दफ़्न हजारों ज़ख्म जहाँ पर दबे हुए हैं राज़ कई
दिल के भीतर वो तहखाना पहले भी था आज भी है
जिस पंछी की परवाज़ों में दिल की लगन भी शामिल हो
बन के मसीहा जान गँवाना पहले भी था आज भी है
दफ़्न हजारों ज़ख्म जहाँ पर दबे हुए हैं राज़ कई
दिल के भीतर वो तहखाना पहले भी था आज भी है
जिस पंछी की परवाज़ों में दिल की लगन भी शामिल हो
उसकी ख़ातिर आबो_दाना पहले भी था आज भी है
कतना, बुनना, रंगना, सिलना, फटना फिर कतना, बुनना
कतना, बुनना, रंगना, सिलना, फटना फिर कतना, बुनना
जीवन का ये चक्र पुराना पहले भी था आज भी है
बदल गया है हर इक क़िस्सा फानी दुनिया का लेकिन
मेरी कहानी तेरा फ़साना पहले भी था आज भी है
बदल गया है हर इक क़िस्सा फानी दुनिया का लेकिन
मेरी कहानी तेरा फ़साना पहले भी था आज भी है
१५.
सच का क़द झूट से बड़ा है न
आज तुमने समझ लिया है न
कैसे रोशन हो रास्ता कोई
मन का दीपक बुझा हुआ है न
इतना जल्दी ये कैसे सुलटेगा
झगड़ा तो आन_बान का है न
दुनिया ख़ामोश है अगर तो क्या
मेरा दिल मुझको टोकता है न
हाथ पर हाथ धर के बैठ गया
दूसरा भी तो रास्ता है न
जड़ में बर्बादियों की ‘हस्ती जी’
ये अना ही तो है पता है न
१६.
उस जगह सरहदें नहीं होतीं
जिस जगह नफ़रतें नही होतीं
उसका साया घना नहीं होता
जिसकी गहरी जड़ें नहीं होतीं
बस्तियों में रहें कि जंगल में
किस जगह उलझनें नहीं होतीं
रास्ते उस तरफ़ भी जाते हैं
जिस तरफ़ मंज़िलें नहीं होतीं
मुंह पे कुछ और पीठ पे कुछ और
हमसे ये हरकतें नहीं होतीं
१७.
सच के हक़ में खडा हुआ जाए
जुर्म भी है तो ये किया जाए
हर मुसाफ़िर मे शऊर कहाँ
कब रुका जाए कब चला जाए
बात करने से बात बनती है
कुछ कहा जाए कुछ सुना जाए
हर क़दम पर है एक गुमराही
किस तरफ़ मेरा काफ़िला जाए
इसकी तह में है कितनी आवाजें
ख़ामशी को कभी सुना जाए
१८.
हमेशा रोना रोती है कमी का
करूँ तो क्या करूँ इस ज़िंदगी का
ये गीता उनकी है बाइबल तुम्हारी
किया बँटवारा किसने रौशनी का
दुकाँ तो खोल ली है सच की लेकिन
कभी चेहरा न देखा बोहनी का
ज़रूरत आई तो गीता भी लिखी
भले था काम अपना सारथी का
वफ़ा की राह में खुद को मिटा कर
मज़ा हमने लिया है ज़िंदगी का
१९.
सीखिए चलना कायदे से जनाब
फिर गिला करिए रास्ते से जनाब
छोड़ दीजे ख़याल मंजिल का
डरते हैं गर जो फ़ासले से जनाब
आपकी शक़्ल ही ख़राब रही
क्या मिला बच के आइने से जनाब
ज़ीस्त के माने भी नहीं मालूम
लगते तो हैं पढ़े-लिखे से जनाब
२०.
जुल्म का सामना करे कुछ तो
आदमी- आदमी लगे कुछ तो
फ़ासले जितने भी जिए हमने
मन के ही थे गढे हुए कुछ तो
जिनको क़तरा लगे है दरिया सा
बादलों उनकी सोचिए कुछ तो
वक़्त का भी नहीं था ख़ौफ़ जिन्हें
ऐसे थे मेरे फ़ैसले कुछ तो
वो मुसाफ़िर ही क्या जो ये सोचे
साथ दें मेरा रास्ते कुछ तो
२१.
साया बनकर साथ चलेंगे इसके भरोसे मत रहना
अपने हमेशा अपने रहेंगे इसके भरोसे मत रहना
सावन का महीना आते ही बादल तो छा जाएँगे
हर हाल में लेकिन बरसेंगे इसके भरोसे मत रहना
सूरज की मानिंद सफ़र पे रोज़ निकलना पड़ता है
बैठे-बैठे दिन बदलेंगे इसके भरोसे मत रहना
बहती नदी में कच्चे घड़े हैं रिश्ते, नाते, हुस्न, वफ़ा
दूर तलक ये बहते रहेंगे इसके भरोसे मत रहना