सीतापुर, उत्तर प्रदेश में जन्में रंजन जैदी के पाँच कहानी संग्रह, तीन उपन्यास और एक काव्य संग्रह.
१.
हमारी बेरुखी, उसकी मुहब्बत का ये आलम था,
नशेमन फूँक कर उसने मुझे कंगन दिखाए थे।
मेरे बिस्तर की हर सिलवट में लहरें थीं समंदर की,
कई तूफाँ थे पोशीदाः मगर तकिये छुपाये थे।
ये सच है इक ज़माने से मैं उसके साथ रहता था,
मगर ये भी हकीकत है के हम दोनों पराये थे।
दिए हैं ज़ख्म कुछ इतने के भरपाई नहीं मुमकिन,
मेरे ज़ख्मों ने मेरी सोच के मंज़र बदल डाले।
२.
खेल गुड़ियों का हकीकत में बदल जायेगा,
फिर कोई ख्वाब ग़मे-ज़ीस्त में ढल जायेगा।
बन्दन मुट्ठी से निकल आये जो सूरज बाहर,
मोम का शह्र है, हर सिम्त पिघल जायेगा।
देखते-देखते सब उड़ गईं चिड़िया यां से,
अब मेरा घर भी कड़ी धूप में जल जायेगा।
एक मिट्टी के प्याले की तरह उम्र कटी,
धूप की तरह रहा वक़्त निकल जायेगा।
घर की दीवारें भी बोसीदः कफ़न ओढ़े हैं,
अबकी तूफाँ मेरे ख़्वाबों को निगल जायेगा।
हमने मायूस कमंदों से न जोड़े रिश्ते,
हिज्र की रात का ये चाँद है, ढल जायेगा।
१.
हमारी बेरुखी, उसकी मुहब्बत का ये आलम था,
नशेमन फूँक कर उसने मुझे कंगन दिखाए थे।
मेरे बिस्तर की हर सिलवट में लहरें थीं समंदर की,
कई तूफाँ थे पोशीदाः मगर तकिये छुपाये थे।
ये सच है इक ज़माने से मैं उसके साथ रहता था,
मगर ये भी हकीकत है के हम दोनों पराये थे।
दिए हैं ज़ख्म कुछ इतने के भरपाई नहीं मुमकिन,
मेरे ज़ख्मों ने मेरी सोच के मंज़र बदल डाले।
२.
खेल गुड़ियों का हकीकत में बदल जायेगा,
फिर कोई ख्वाब ग़मे-ज़ीस्त में ढल जायेगा।
बन्दन मुट्ठी से निकल आये जो सूरज बाहर,
मोम का शह्र है, हर सिम्त पिघल जायेगा।
देखते-देखते सब उड़ गईं चिड़िया यां से,
अब मेरा घर भी कड़ी धूप में जल जायेगा।
एक मिट्टी के प्याले की तरह उम्र कटी,
धूप की तरह रहा वक़्त निकल जायेगा।
घर की दीवारें भी बोसीदः कफ़न ओढ़े हैं,
अबकी तूफाँ मेरे ख़्वाबों को निगल जायेगा।
हमने मायूस कमंदों से न जोड़े रिश्ते,
हिज्र की रात का ये चाँद है, ढल जायेगा।