" हिन्दी काव्य संकलन में आपका स्वागत है "


"इसे समृद्ध करने में अपना सहयोग दें"

सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
हिन्दी काव्य संकलन में उपल्ब्ध सभी रचनायें उन सभी रचनाकारों/ कवियों के नाम से ही प्रकाशित की गयी है। मेरा यह प्रयास सभी रचनाकारों को अधिक प्रसिद्धि प्रदान करना है न की अपनी। इन महान साहित्यकारों की कृतियाँ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचाना ही इस ब्लॉग का मुख्य उद्देश्य है। यदि किसी रचनाकार अथवा वैध स्वामित्व वाले व्यक्ति को "हिन्दी काव्य संकलन" के किसी रचना से कोई आपत्ति हो या कोई सलाह हो तो वह हमें मेल कर सकते हैं। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जायेगी। यदि आप अपने किसी भी रचना को इस पृष्ठ पर प्रकाशित कराना चाहते हों तो आपका स्वागत है। आप अपनी रचनाओं को मेरे दिए हुए पते पर अपने संक्षिप्त परिचय के साथ भेज सकते है या लिंक्स दे सकते हैं। इस ब्लॉग के निरंतर समृद्ध करने और त्रुटिरहित बनाने में सहयोग की अपेक्षा है। आशा है मेरा यह प्रयास पाठकों के लिए लाभकारी होगा.(rajendra651@gmail.com)

फ़ॉलोअर

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

अभिज्ञात


जन्म - १९६२ गाँव कम्हरियां, जिला आजमगढ़, उत्तर प्रदेश, भारत।कविता संग्रह - एक अदहन हमारे अन्दर, भग्न नींड़ के आर पार, आवारा हवाओं के खिलाफ़ चुपचाप, वह हथेली, सरापत हूँ, वह दी हुई नींद। 
उपन्यास - अनचाहे दरवाज़े पर , जिसे खोजा (शीघ्र प्रकाश्य)।
एकांकी - बुझ्झन।
*******************************************
१.
दूर हम तुमसे जा नहीं सकते
शर्त ये भी है पा नही सकते

किसी को अपने आँसुओं का सबब
लाख चाहे बता नहीं सकते

जिस पे लिक्खी है इबारत कोई
हम वो दीवार ढा नही सकते

उसको रिश्तों से है नफ़रत शायद
कोई रिश्ता बना नहीं सकते
२.
ख्व़ाब जैसा ही वाक़या होता
तू मेरे घर जो आ गया होता

जिन ख़तों को सँभाल कर रक्खा
काश उनको मैं भेजता होता

ख्व़ाब के ख्व़ाब देखने वाले
आँख से भी तो देखता होता

तुझको देखा तो मेरे दिल ने कहा
मैं न होता इक आईना होता

खुद को मैं ढूँढे से कहाँ मिलता
गर न तुझको मैं चाहता होता

३.
दे के मिलने का भरोसा उसने
मुझको छोड़ा न कहीं का उसने

दूरियाँ और बढ़ा दी गोया
फ़ासला रख के ज़रा-सा उसने

यों भी तीखा था हुस्न का तेवर
संगे दिल को भी तराशा उसने

मेरे किरदारे वफ़ा को लेकर
सबको दिखलाया तमाशा उसने

हमने दिल रक्खा था लुटा बैठे
हुस्न पाया है भला-सा उसने

खत तो भेजा है मुहब्बत में मगर
अपना भेजा नहीं पता उसने

मेरे आगे वो बोलता ही नहीं
तुझसे क्या क्या कहा बता उसने

४.
बारहा तोहमतें गिला रखिए
आप हमसे ये सिलसिला रखिए

लूटने वाला हँसी है इतना
जाँ से जाने का हौसला रखिए

दिल की खिड़की अगर खुली हो तो
दिल के चारों तरफ़ किला रखिए

हमको देना है बहुत कुछ लेकिन
क्या बताएँ कि आप क्या रखिए

और क्या आजमाइशें होंगी
पास आकर भी फ़ासला रखिए

फिर भी तनहाइयाँ सताएँगी
आप चाहे तो काफ़िला रखिए

५.

अभी तो दरमियाँ फ़ासलो के जंगल है
अभी आगाज़ से पहले भी कई मुश्किल है

अपनी हर हाल में मर जाने की तमन्ना है
मिले ये चैन कि अपना-सा कोई क़ातिल है

एक हम हैं कि कभी वास्ता नही रखते
कि अपने सामने मायूस अपनी मंज़िल है

६.

तीरगी का है सफ़र रुक जाओ
बोले अनबोले हैं डर रुक जाओ

तुम्हारे पास वक़्त कम हो तो
ले लो तुम मेरी उमर रुक जाओ

हर ओर दुकाने ही दुकानें हैं
कोई मिल जाए जो घर रुक जाओ

जश्न में उस तरफ़ क्यों बिखरें हैं
किसी नन्हे परिंदे के पर रुक जाओ

७.

बातों बातों में जो ढली होगी
वो रात कितनी मनचली होगी

तेरे सिरहाने याद भी मेरी
रात भर शम्मां-सी जली होगी

जिससे निकला है आफ़ताब मेरा
वो तेरा घर तेरी गली होगी

दोस्तों को पता चला होगा
दुश्मनों-सी ही खलबली होगी

सबने तारीफ़ तेरी की होगी
मैं चुप रहा तो ये कमी होगी

तेरी आँखो में झाँकने के बाद
लड़खड़ाऊँ तो मयक़शी होगी

है तेरा ज़िक्र तो यकीं है मुझे
मेरे बारें में बात भी होगी

८.
कभी बिखरा के सँवारा तो करो
मुझपे एहसान गवारा तो करो

जिसकी सीढ़ी से कभी गिर के मरूँ
ऐसी मंज़िल का इशारा तो करो

मैं कहाँ डूब गया ये छोड़ो
तुम बहरहाल किनारा तो करो

हमको दिल से नही कोई मतलब
तुम ज़रा हँस के उजाला