१.
गली के मोड़ पर है धूप नज़रें तो ज़रा डालें।
चलें चलकर वहाँ सीलन भरे सपने सुखा डालें।
बना सकते नहीं जो झोंपड़ों पर फूस के छप्पर ,
वही नारे लगाते हैं नई दुनिया बसा डालें।
ये भीगी ज़िन्दगी जो अलगनी पर टांग रक्खी है ,
कहाँ जाकर निचोडें किस तरफ़ दरिया बहा डालें।
अभी चौपाल में कठपुतलियों का नाच जारी है,
चलो अच्छा है इतनी देर तो फ़ाके भुला डालें।
हुआ अफ़सोस सुनकर भूख से फिर मर गया कोई,
न क्यों इस बात का हम ज़िक्र जलसे में उठा डालें।
इधर ये माजरा, लाशें कफ़न तक को तरसती हैं,
उधर ये खेल, चाहे जब नया परचम बना डालें।