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सन्देश

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और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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गुरुवार, 11 अप्रैल 2013

मिश्कात आबिदी



1.

बताये कोई लोग क्यों सो रहे हैं
ये बेचारगी किस लिए ढो रहे हैं
पड़ोसी को बस कोस कर रो रहे हैं
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं

हुआ क्या जो इस दर्जा मजबूर हैं हम
क़दम क्यों उठाने से माजूर हैं हम
हकीकत से क्यों इस कदर दूर हैं हम
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं

कहाँ से हैं आते ये जानों के दुश्मन
अमन शांती के तरानों के दुश्मन
हैं क्यों ये हमारे ठिकानों के दुश्मन
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं

हुकूमत ने होंटों को सी क्यों लिया है
तकल्लुफ का आख़िर ये क्यों सिलसिला है
सही बात कहने में खतरा ही क्या है
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं ?

तबाही का ये दौर कब तक चलेगा
इसी तर्ह क्या खून बहता रहेगा
या कोई कभी खुल के भी कुछ कहेगा
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं ?

ज़रा जा के दहशत-पनाहों से पूछो
तशद्दुद-पसंदी के शाहों से पूछो
गला थाम कर कम-निगाहों से पूछो
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं ?

ये उजड़े हुए घर ये जिस्मों के टुकड़े
कभी थे जो माँओं की आंखों के टुकड़े
हुए बेखता, बेगुनाहों के टुकड़े
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं ?

हैं कातिल मेरे मुल्क के राहबर भी
जो करते नहीं कुछ, ये सब देख कर भी
कभी दहशतें पहोंचेंगी उनके घर भी
धमाके ये हर सिम्त क्यों हो रहे हैं ?