जन्म: 02 जून 1982. जन्म स्थान, कानपुर, उत्तर प्रदेश,१९९४ से काव्य-रचना - विभिन्न विधाओं में, जैसे- छंद (घनाक्षरी, सवैया, दोहा, संस्कृत-वर्णवृत्त), गीत, ग़ज़ल, मुक्तक |ब्लॉग dwivediashutosh.blogspot.com
(१)
भाषा में जो भाव बँधे, उनको सारी दुनिया समझे |
अंतरतम कि मूक साधना कोई सरल हिया समझे |
रास रचाने रात गए किस पागलपन में पाँव बढे?
इसे न मैं भी जानूं, केवल मेरा सांवरिया समझे |
उसके ही स्वर जग जाएँ तो फिर घर-घर हो रामायण,
एक व्यक्ति ऐसा जो सारे जग को राम-सिया समझे |
अँधियारे का एक लक्ष्य, बस उजियारे को ग्रस लेना,
इसी चुनौती को नन्हा सा जलता हुआ दिया समझे |
जिस दिन यह मन दास हुआ, उस दिन सारा स्वामित्व मिला,
रहे भिखारी तब तक, जब तक अपने को मुखिया समझे |
कवि का चित्त कि जो भटकन में ही आश्रय को खोज रहा,
और किसे यह चाह कि वो चातक का पिया-पिया समझे |
जाती है वह अमियमयी जिस ओर स्वर्ग बन जाता है,
इस महिमा को ‘आशुतोष’ कि छोटी सी कुटिया समझे |
(२)
यहाँ खामोश नज़रों की गवाही कौन पढ़ता है ?
मेरी आँखों में तेरी बेगुनाही कौन पढ़ता है ?
नुमाइश में लगी चीज़ों को मैला कर रहे हैं सब,
लिखी तख्तों पे - "छूने की मनाही" कौन पढ़ता है ?
जहाँ दिन के उजालों का खुला व्यापार चलता हो,
वहाँ बेचैन रातों की सियाही कौन पढ़ता है ?
ये वो महफिल है, जिसमें शोर करने की रवायत है,
दबे लब पर हमारी वाह-वाही कौन पढ़ता है ?
वो बाहर देखते हैं, औ' हमें मुफलिस समझते हैं,
खुदी जज्बों पे - अपनी बादशाही कौन पढ़ता है ?
जो खुशकिस्मत हैं, बादल-बिजलियों पर शेर कहते हैं,
लुटे आँगन में मौसम की तबाही, कौन पढ़ता है ?
३.
वो यही सोच के बाज़ार में आई होगी |
आबरू बेंच के थोड़ी तो कमाई होगी |
उसने कपड़ों पे' बहुत खर्च किया होगा पर,
ऐसा फैशन है कि तन ढँक नहीं पायी होगी |
ये तो मालूम था सच को न सुना जायेगा,
पर ये अंदाज़ा नहीं था कि पिटाई होगी |
जैसे बन में रँगा सियार बना था राजा,
वैसे नेताओं ने सरकार बनाई होगी ?
कोई बड़ों से ये कह दे कि ज़रा कम बोलें,
इसी में देश के बच्चों की भलाई होगी |
खुशबुएँ ले के हवाएं उधर से आती हैं,
उस कली ने मेरी ग़ज़ल कोई गायी होगी |