जन्म: १६ जनवरी
१९७३ को कोरबा छत्तीसगढ़,ई मेल:
cmanoshi@gmail.com
1.
आशना हो कर कभी नाआशना हो जायेगा
क्या ख़बर थी एक दिन वो बेवफ़ा हो जायेगा
मैंने अश्क़ों को जो अपने रोक कर रक्खा, मुझे
डर था इनके साथ तेरा ग़म जुदा हो जायेगा
क्या है तेरा क्या है मेरा गिन रहा है रात-दिन
आदमी इस कश्मकश में ही फ़ना हो जायेगा
मैं अकेला हूँ जो सारी दुनिया को है फ़िक्र, पर
तारों के संग चल पड़ा तो क़ाफ़िला हो जायेगा
.
मुझको कोई ख़ौफ़ रुसवाई का यूँ तो है नहीं
लोग समझाते हैं मुझको तू बुरा हो जायेगा
मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो जाने क्या हो जायेगा
पत्थरों में 'दोस्त' किसको ढूँढता है हर पहर
प्यार से जिससे मिलेगा वो ख़ुदा हो जायेगा
२.
कहने को तो वो मुझे अपनी निशानी दे गया
मुझ से लेकर मुझको ही मेरी कहानी दे गया
जिसको अपना मान कर रोएँ कोई पहलू नहीं
कहने को सारा जहाँ दामन जुबानी दे गया
घर में मेरे उस बुढ़ापे के लिए कमरा नहीं
वो जो इस घर के लिए सारी जवानी दे गया
आदमी को आदमी से जब भी लड़ना था कभी
वो खुदा के नाम का किस्सा बयानी दे गया
उस के जाने पर भला रोएँ कभी क्यों जो मुझे
ज़िंदगी भर के लिए यादें सुहानी दे गया
३.
लोग मुझको कहें ख़राब तो क्या
और मैं अच्छा हुआ जनाब तो क्या
है ही क्या मुश्तेख़ाक से बढ़ कर
आदमी का है ये रुआब तो क्या
उम्र बीती उन आँखों को पढ़ते
इक पहेली सी है किताब तो क्या
मैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँ
कोई है गर जो आफ़ताब तो क्या
ज़िंदगी ही लुटा दी जिस के लिये
माँगता है वही हिसाब तो क्या
मिलते ही मैं गले नहीं लगता
फिर किसी को लगा खराब तो क्या
आ गया जो सलीका-ए-इश्क अब
'दोस्त' मरकर मिला सवाब तो क्या
४.
हज़ार क़िस्से सुना रहे हो
कहो भी अब जो छुपा रहे हो
ये आज किस से मिल आये हो तुम
जो नाज़ मेरे उठा रहे हो
जो दिल ने चाहा वो कब हुआ है
फ़िज़ूल सपने सजा रहे हो
सयाना अब हो गया है बेटा
उम्मीद किस से लगा रहे हो
तुम्हारे ग़म में लिपट के रोया
उसी से अब जी चुरा रहे हो
मेरी लकीरें बदल गई हैं
ये हाथ किस से मिला रहे हो
ज़रूर कुछ ग़म है 'दोस्त' तुम को
ख़ुदा के घर से जो आ रहे हो
५.
तेरा मेरा रिश्ता क्या है
फिर इस दर्द का मुद्दा क्या है
हर इक बात में ज़िक्रे-यार अब
तर्के-तआल्लुक़ है, या क्या है
(तर्के-तआल्लुक़ = टूटा रिश्ता)
उम्र लगी तआरुफ़ होने में
खु़द से मिल कर रोता क्या है
(तआरुफ़ = पहचान होना, परिचय)
एक नशेमन तिनका तिनका
तेरा क्या और मेरा क्या है
(नशेमन- आशियाना)
अपनी-अपनी राहें हैं अब
झूठा क्या और सच्चा क्या है
६.
ये जहाँ मेरा नहीं है
कोई भी मुझसा नहीं है
मेरे घर के आइने में
अक्स क्यों मेरा नहीं है
आंखों में तो कुछ नहीं फिर
पानी क्यों रुकता नहीं है
दिख रही है आँख में जो
बात वो कहता नहीं है
मैं भला क्यों जाऊँ मंदिर
ग़म ने जब घेरा नहीं है
देखते हो आदमी जो
उसका ये चेहरा नहीं है
एक ढेला मिट्टी का भी
मेरा या तेरा नहीं है
७.
लाख चाहें फिर भी मिलता सब नहीं है
जुस्तजू पर आदमी को कब नहीं है
हम अभी तक नाते रिश्तों में बंधे हैं
वो नहीं मिलते कि अब मतलब नहीं है
ढूँढ़ता है दर बदर क्यों मारा मारा
प्यार ही तो ज़िन्दगी में सब नहीं है
हमने अपने राज़ क्या बताएँ उनको
दोस्ती जो थी कभी वो अब नहीं है
तेरे जैसे इस जहाँ में 'दोस्त' कितने
जो कहे उनका कोई मज़हब नहीं है
८.
कोई तो होता जो इस जहां में
दिलों की कहता मेरी ज़ुबां में
कहाँ कहाँ न खुशी को ढूँढा
मिली मेरे दिल के ही मकां में
कभी न टूटे वो ख्वाब मेरे
सजा रखे हैं जो आसमां में
है सारी दुनिया मेरी बदौलत
हर आदमी है इसी गुमां में
सभी ने खुद को खुदा बताया
मिला न इंसां मगर इंसां में
1.
आशना हो कर कभी नाआशना हो जायेगा
क्या ख़बर थी एक दिन वो बेवफ़ा हो जायेगा
मैंने अश्क़ों को जो अपने रोक कर रक्खा, मुझे
डर था इनके साथ तेरा ग़म जुदा हो जायेगा
क्या है तेरा क्या है मेरा गिन रहा है रात-दिन
आदमी इस कश्मकश में ही फ़ना हो जायेगा
मैं अकेला हूँ जो सारी दुनिया को है फ़िक्र, पर
तारों के संग चल पड़ा तो क़ाफ़िला हो जायेगा
.
मुझको कोई ख़ौफ़ रुसवाई का यूँ तो है नहीं
लोग समझाते हैं मुझको तू बुरा हो जायेगा
मैं समंदर सा पिये बैठा हूँ सारा दर्द जो
एक दिन गर फट पड़ा तो जाने क्या हो जायेगा
पत्थरों में 'दोस्त' किसको ढूँढता है हर पहर
प्यार से जिससे मिलेगा वो ख़ुदा हो जायेगा
२.
कहने को तो वो मुझे अपनी निशानी दे गया
मुझ से लेकर मुझको ही मेरी कहानी दे गया
जिसको अपना मान कर रोएँ कोई पहलू नहीं
कहने को सारा जहाँ दामन जुबानी दे गया
घर में मेरे उस बुढ़ापे के लिए कमरा नहीं
वो जो इस घर के लिए सारी जवानी दे गया
आदमी को आदमी से जब भी लड़ना था कभी
वो खुदा के नाम का किस्सा बयानी दे गया
उस के जाने पर भला रोएँ कभी क्यों जो मुझे
ज़िंदगी भर के लिए यादें सुहानी दे गया
३.
लोग मुझको कहें ख़राब तो क्या
और मैं अच्छा हुआ जनाब तो क्या
है ही क्या मुश्तेख़ाक से बढ़ कर
आदमी का है ये रुआब तो क्या
उम्र बीती उन आँखों को पढ़ते
इक पहेली सी है किताब तो क्या
मैं जो जुगनु हूँ गर तो क्या कम हूँ
कोई है गर जो आफ़ताब तो क्या
ज़िंदगी ही लुटा दी जिस के लिये
माँगता है वही हिसाब तो क्या
मिलते ही मैं गले नहीं लगता
फिर किसी को लगा खराब तो क्या
आ गया जो सलीका-ए-इश्क अब
'दोस्त' मरकर मिला सवाब तो क्या
४.
हज़ार क़िस्से सुना रहे हो
कहो भी अब जो छुपा रहे हो
ये आज किस से मिल आये हो तुम
जो नाज़ मेरे उठा रहे हो
जो दिल ने चाहा वो कब हुआ है
फ़िज़ूल सपने सजा रहे हो
सयाना अब हो गया है बेटा
उम्मीद किस से लगा रहे हो
तुम्हारे ग़म में लिपट के रोया
उसी से अब जी चुरा रहे हो
मेरी लकीरें बदल गई हैं
ये हाथ किस से मिला रहे हो
ज़रूर कुछ ग़म है 'दोस्त' तुम को
ख़ुदा के घर से जो आ रहे हो
५.
तेरा मेरा रिश्ता क्या है
फिर इस दर्द का मुद्दा क्या है
हर इक बात में ज़िक्रे-यार अब
तर्के-तआल्लुक़ है, या क्या है
(तर्के-तआल्लुक़ = टूटा रिश्ता)
उम्र लगी तआरुफ़ होने में
खु़द से मिल कर रोता क्या है
(तआरुफ़ = पहचान होना, परिचय)
एक नशेमन तिनका तिनका
तेरा क्या और मेरा क्या है
(नशेमन- आशियाना)
अपनी-अपनी राहें हैं अब
झूठा क्या और सच्चा क्या है
६.
ये जहाँ मेरा नहीं है
कोई भी मुझसा नहीं है
मेरे घर के आइने में
अक्स क्यों मेरा नहीं है
आंखों में तो कुछ नहीं फिर
पानी क्यों रुकता नहीं है
दिख रही है आँख में जो
बात वो कहता नहीं है
मैं भला क्यों जाऊँ मंदिर
ग़म ने जब घेरा नहीं है
देखते हो आदमी जो
उसका ये चेहरा नहीं है
एक ढेला मिट्टी का भी
मेरा या तेरा नहीं है
७.
लाख चाहें फिर भी मिलता सब नहीं है
जुस्तजू पर आदमी को कब नहीं है
हम अभी तक नाते रिश्तों में बंधे हैं
वो नहीं मिलते कि अब मतलब नहीं है
ढूँढ़ता है दर बदर क्यों मारा मारा
प्यार ही तो ज़िन्दगी में सब नहीं है
हमने अपने राज़ क्या बताएँ उनको
दोस्ती जो थी कभी वो अब नहीं है
तेरे जैसे इस जहाँ में 'दोस्त' कितने
जो कहे उनका कोई मज़हब नहीं है
८.
कोई तो होता जो इस जहां में
दिलों की कहता मेरी ज़ुबां में
कहाँ कहाँ न खुशी को ढूँढा
मिली मेरे दिल के ही मकां में
कभी न टूटे वो ख्वाब मेरे
सजा रखे हैं जो आसमां में
है सारी दुनिया मेरी बदौलत
हर आदमी है इसी गुमां में
सभी ने खुद को खुदा बताया
मिला न इंसां मगर इंसां में