सरहद से आया नहीं , होली पे क्यूँ लाल !
माँ की आँखें रंग से , करती रही सवाल !!
सच करना था झूठ को, बोले कितने झूठ !
जो मैं सच ही बोलता , आफत जाती छूट !!
इक सच बोला और फिर , देखा ऐसा हाल !
कुछ ने नज़रें फेर ली,कुछ की आँखें लाल !!
उल्टे - सीधे काफ़िये , ना ढंग का रदीफ़ !
कह दी सच्ची बात तो , शायर को तकलीफ़ !!
तपने से परहेज़ है , छपने का है चाव !
जो दिख लावे आइना ,उस पे खावे ताव !!
ये मेरे महबूब का ,कैसा अजब स्वभाव !
कभी जतावे प्यार तो ,कभी दिखावे ताव !!
पहरेदारी मुल्क़ की , सौंप हमारे हाथ !
पूरा भारत चैन से , सोये सारी रात !!
बिटिया बिन हो जायगा , मरघट ये संसार !
खिलने दे इस फूल को , तोड़ इसे ना यार !!
बिन बिटिया सब सून है , इतना तो तूं सोच !
तितली है ये बाग़ की ,पर ना इसके नोच !!
महबूबा सी है लगे , सरहद बनी लकीर !
नज़र उठी इस और तो , सीना देंगे चीर !!
कहाँ गई वो लोरियां , कहाँ गये वो चाव !
बच्चों ने भी फाड़ दी , काग़ज़ वाली नाव !!
दोहा है ना काव्य है ,बस छपने की होड़ !
पाठक पढ़कर श्राप दे ,ऐसा लिखना छोड़ !!
ज़रा -ज़रा सी बात पे ,आवे उसको ताव !
शायद ताज़ा हो गया , कोइ पुराना घाव !!
सरहद के ही नाम है , जीवन सारा यार !
सीमाएँ महफूज़ है , हम जो पहरेदार !!
सरहद ही बस तीर्थ है , सरहद ही है धाम !
सरहद पे ही काट दी , हमने उमर तमाम !!
दौलत की आग़ोश में , हुए खूब मशहूर !
पर अपनों से हो गये , यारों कौसों दूर !!
हिन्दी -उर्दू बैठ के , एक साथ में रोय
आशिक़ दोनों के बड़े , माँग भरे ना कोय
माह सितम्बर आय है ,माह सितम्बर जाय
हिन्दी हिन्दी तो करें ,कोई ना अपनाय
या तो कह दो प्यार है , या कह दो तक़रार !
छोड़ो ना मझदार में , आर करो या पार !!
होंठ लगे जब काँपने, करने में इज़हार !
तब नैनों ने ये कहा ,मुझको तुमसे प्यार !!