नाम : श्यामल किशोर झा,लेखकीय नाम : श्यामल सुमन,जन्म तिथि : 10.01.1960
जन्म स्थान : चैनपुर, जिला सहरसा, बिहार, भारत शिक्षा : एम० ए० - अर्थशास्त्र,तकनीकी
शिक्षा:विद्युत अभियंत्रण में डिप्लोमा,गीत ग़ज़ल संकलन "रेत में जगती नदी","संवेदना के स्वर"-कला मंदिर प्रकाशन में प्रकाशनार्थ,ब्लोग्स - http://www.manoramsuman.blogspot.com-http://meraayeena.blogspot.com/http://
सम्पर्क :09955373288,shyamalsuman@gmail.com
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हर दम्पति की आस है इक न इक सन्तान।
बेटी पहले ही मिले अगर कहीं भगवान।।
प्यारी होती बेटियाँ सबका करे खयाल।
नैहर में जीवन शुरू शेष कटे ससुराल।।
घर की रौनक बेटियाँ जाती है क्यों दूर।
समझ न पाया आजतक कैसा यह दस्तूर।।
सारी खुशियाँ मिल सके चाहत मन में खास।
सब कुछ देकर न मिटे फिर देने की प्यास।
शादी बिटिया की इधर मन के भीतर टीस।
मना रहे श्यामल सुमन सालगिरह उनतीस।।
प्रेम सदा जीवन सुमन जीने का आधार।
नैसर्गिक उस प्रेम का हरदम हो इजहार।।
मन मंथन नित जो करे पाता है सुख चैन।
सुमन मिले मनमीत से स्वतः बरसते नैन।।
भाव देखकर आँख में जगा सुमन एहसास।
अनजाने में ही सही वो पल होते खास।।
जीवन में कम ही मिले स्वाभाविक मुस्कान।
नया अर्थ मुस्कान का सोच सुमन नादान।।
प्रेम-ज्योति प्रियतम लिये देख सुमन बेहाल।
उस पर मीठे बोल तो सचमुच हुआ निहाल।।
प्रेम समर्पण इस कदर करे प्राण का दान।
प्रियतम के प्रति सर्वदा सुमन हृदय सम्मान।।
सुख दुख दोनों में रहे हृदय प्रेम का वास।
जब ऐसा होता सुमन प्रियतम होते खास।।
मान लिया अपना जिसे रहती उसकी याद।
यादों के उस मौन से सुमन करे संवाद।।
सुमन प्रेम को जानकर बहुत दिनों से मौन।
प्रियतम जहाँ करीब हो भला रहे चुप कौन।।
प्रेम से बाहर कुछ नहीं जगत प्रेममय जान।
सुमन मिलन के वक्त में स्वतः खिले मुस्कान।।
जो बुनते सपने सदा प्रेम नियति है खास।
जब सपना अपना बने सुमन सुखद एहसास।।
नैसर्गिक जो प्रेम है करते सभी बखान।
इहलौकिकता प्रेम का सुमन करे सम्मान।।
सृजन सुमन की जान है प्रियतम खातिर खास।
दोनो की चाहत मिले बढ़े हृदय विश्वास।।
निश्छल मन होते जहाँ प्रायःसुन्दर रूप।
सुमन हृदय की कामना कभी लगे न धूप।।
आस मिलन की संग ले जब हो प्रियतम पास।
सुमन की चाहत खास है कभी न टूटे आस।
व्यक्त तुम्हारे रूप को सुमन किया स्वीकार।
अगर तुम्हें स्वीकार तो हृदय से है आभार।।
सोने की चिड़िया कभी, अपना भारत देश।
अब के जो हालात हैं, सुमन हृदय में क्लेश।।
मँहगी रोटी हो रही, लेकिन सस्ती कार।
यही प्रगित की माप है, समझाती सरकार।।
भूखे हैं बहुजन यहाँ, उनके छत आकाश।
संकट में सब खो रहे, जीने का विश्वास।।
देख क्रिकेटर को मिले, रुपये कई करोड़।
लाख शहीदों के लिए, हाल दुखद बेजोड़।।
प्रायः सब कहते सफल, अन्ना का अभियान।
असल काम तो शेष है, भ्रष्टों की पहचान।।
जीवन में नित सीखते, नव-जीवन की बात।
प्रेम कलह के द्वंद में, समय कटे दिन रात।।
चूल्हा-चौका सँग में, और हजारो काम।
डरते हैं पतिदेव भी, शायद उम्र तमाम।।
झाड़ू, कलछू, बेलना, आलू और कटार।
सहयोगी नित काज में, और कभी हथियार।।
जो ज्ञानी व्यवहार में, करते बाहर प्रीत।
घर में अभिनय प्रीत के, रीति बहुत विपरीत।।
मेहनत बाहर में पति, देख थके घर-काज।
क्या करते, कैसे कहें, सुमन आँख में लाज।।
प्रायः गैस के रोग से आम लोग मजबूर।
कीमत कुछ ऐसे बढ़ी गैस किचन से दूर।।
आमलोग खाते कहाँ अब मौसम में आम।
जनमत की सरकार है रोज बढ़ाये दाम।।
जीवन जीना है अगर क्या रोने का अर्थ।
मिले हाथ प्रतिकार को समय करो न व्यर्थ।।
लोहा जब होता गरम तभी उचित है चोट।
अपने से इन्साफ कर सोच समझ दे वोट।।
है मंत्री को क्या पड़ी उनके घर में चैन।
इधर करोड़ों लोग के भरे हुए हैं नैन।।
बात गरीबों की करे चढ़ते सभी जहाज।
है मोहक मुस्कान पर करे कभी न लाज।।
शासक दिल्ली के नहीं आम लोग के मीत।
सुमन सजग सब हों अगर ये सरकार अतीत।।
हँसना रोना जिन्दगी, मगर मूल है प्यार।
मिले सुमन को प्यार में, काँटे कई हजार।।
एक तरफ का प्यार क्या, दूजा जब अनजान।
नहीं सुमन सम्वाद तब, भीतर से हलकान।।
बेचैनी में दिन कटे, खुली आँख में रात।
समझेगा तब कौन जो, सुमन हृदय जज्बात।।
बिना प्यार की जिन्दगी, बस गुड़ियों का खेल।
अनुपम है वो पल सुमन, मन से मन का मेल।।
परम्परा सौतन कभी, सुमन कभी अज्ञान।
खोते पल जो प्यार के, बने हुए नादान।।
होते अक्सर साथ में, लेकिन मन से दूर।
हाल यही प्रायः सुमन, लोग दिखे मजबूर।।
छोटी सी ये जिन्दगी, गिने सुमन दिन रैन।
यादों में वो पल जहाँ, मिले नैन से नैन।।
लोग यही अक्सर कहे जीवन है संघर्ष।
देता है संघर्ष ही जीवन को उत्कर्ष।।
घृणा, ईर्ष्या, क्रोध संग त्यागे जो उन्माद।
जीवन तब अनमोल है नित्य घटे अवसाद।।
आज प्रगति के नाम पर संकट में विश्वास।
फिर भी सबको है लगी इक दूजे से आस।।
प्रेम, सजगता, सौम्यता है जीवन का मूल।
मगर कलह आवेश में क्यों होती यह भूल।।
तीस बरस की जिन्दगी सुमन संगिनी संग।
खोज रहा श्यामल सदा जीवन के नव-रंग।।
आँगन सूना घर हुआ, बच्चे घर से दूर।
मजदूरी करने गया, छोड़ यहाँ मजबूर।।
जल्दी से जल्दी बनें, कैसे हम धनवान।
हम कुदाल बनते गए, दूर हुई संतान।।
ऊँचे पद संतान की, कहने भर में जोश।
मगर वही एकांत में, भाव-जगत बेहोश।।
कहाँ मिला कुछ आसरा, वृद्ध हुए माँ बाप।
कहीं सँग ले जाय तो, मातु पिता अभिशाप।।
जैसी भी है जिन्दगी, करो सुमन स्वीकार।
शायद जीवन को मिले एक नया विस्तार।।
देखा मरते हैं कई, जीवन में सौ बार।
जीते जो रहते सदा, मरने को तैयार।।
वश में उनके चँदनी, है जिनमें जज्बात।
कुछ ऐसे भी लोग जो, भूले निज औकात।।
पागलपन है लोग मे, हों कैसे धनवान।
गला काटने के लिए, तत्पर हैं श्रीमान।।
मानवता घुटती यहाँ, नहीं किसी को चैन।
चेहरे पर मुस्कान है, और भींगते नैन।।
आँखों में दिखते नहीं, सम्वेदन के भाव।
भौतिकता की दौड़ का, यह विपरीत प्रभाव।।
मोल नहीं सम्बन्ध का, टूट रहा परिवार।
विश्व-ग्राम की चासनी, बना आज श्रृंगार।।
देख चमक है ऊपरी, भीतर भरा तनाव।
चेत सुमन यह वक्त है, कर ले सही चुनाव।।
ताकत जीने की मिले, वैसा दुख स्वीकार।
जीवन ऐसे में सुमन, खुद पाता विस्तार।।
दुख ही बतलाता हमें, सुख के पल अनमोल।
मुँह सुमन जब आँवला, पानी, मिश्री-घोल।।
जामुन-सा तन रंग पर, हृदय चाँद का वास।
आकर्षक चेहरा सुमन, पसरे स्वयं सुवास।।
जीवन परिभाषित नहीं, अलग सुमन के रंग।
करते परिभाषित सभी, सबके अपने ढंग।।
मातम जहाँ पड़ोस में, सुन शहनाई आज।
हृदय सुमन का रो पड़ा, कैसा हुआ समाज।।
चाहत सारे सुख मिले, मिहनत से परहेज।
शायद ऐसे लोग ही, माँगे सुमन दहेज।।
लेखन में अक्सर सुमन, अनुभव का गुणगान।
गम-खुशियों की चासनी, साहित्यिक मिष्ठान।।
कंचन काया कामिनी, कलाकंद कुछ काल।
कारण कामुकता कलह, कामधेनु कंकाल।।
सम्भव सपने से सुलभ, सुन्दर-सा सब साल।
समुचित सहयोगी सुमन, सुलझे सदा सवाल।।
मन्द मन्द मुस्कान में, मस्त मदन मनुहार।
मारक मुद्रा मोहिनी, मुदित मीत मन मार।।
किससे कब कैसे कहें, करना क्या कब काम।
कला कलियुगी कवच को, कहते कई कलाम।।
शय्या शोभित श्यामली, शुद्ध शुभंकर शाम।
शिला शिखर शंकर शिविर, शिखा शमन शिवनाम ।।
चकाचौंध गर ना हुआ, किसको है परवाह।
दीपक इक घर घर जले, यही सुमन की चाह।।
रात अमावस की भले, सुमन तिमिर हो दूर।
दीप जले इक देहरी, अन्धेरा मजबूर।।
हाथ पटाखे हैं लिए, सुमन खुशी यह देख।
कुछ बच्चे बस देखते, यही भाग्य का लेख।।
कैसी दीवाली सुमन, मँहगाई की मार।
और मिलावट भी यहाँ, क्यों दिल्ली लाचार?
स्वाति बूंद की आस में, सुमन साल भर सीप।
अन्धकार दिल से मिटे, हर आँगन में दीप।।
मैं सबसे अच्छा सुमन, खतरनाक है रोग।
हैं सुर्खी में आजकल, दो कौड़ी के लोग।।
लाज बिना जो बोलते, हो करके बेबाक।
समझे जाते हैं वही, आज सुमन चालाक।।
चर्चा पूरे देश में, जागा है इन्सान।
पूजित नारी का सुमन, लौट सके सम्मान।।
घटनाओं पर बोलते, परम्परा के दूत।
कारण बतलाते सुमन, है पश्चिम का भूत।।
नारी है माता कभी, कभी बहन का प्यार।
और प्रेयसी भी सुमन, मगर उचित व्यवहार।।
छोटी दुनिया हो गयी, जैसे हो इक टोल।
दूरी आपस की घटी, पर रिश्ते बेमोल।।
क्रांति हुई विज्ञान की, बढ़ा खूब संचार।
आतुर सब एकल बने, टूट रहा परिवार।।
हाथ मिलाते जब सुमन, जतलाते हैं प्यार।
क्या पड़ोस में कल हुआ, बतलाते अखबार।।
कौन आज खुरपी बने, पूछे सुमन सवाल।
जो दिखता है सामने, प्रायः सभी कुदाल।।
तारे सा टिमटिम करे, बनते हैं महताब।
ऐसे भी ज्ञानी सुमन, पढ़ते नहीं किताब।।
शेर पूछता आजकल, दिया कौन यह घाव।
लगता है वन में सुमन, होगा पुनः चुनाव।।
गलबाँही अब देखिये, साँप नेवले बीच।
गद्दी पाने को सुमन, कौन ऊँच औ नीच।।
मंदिर जाता भेड़िया, देख हिरण में जोश।
साधु चीता अब सुमन, फुदक रहा खरगोश।।
पीता है श्रृंगाल अब, देख सुराही नीर।
थाली में खाये सुमन, कैसे बगुला खीर।।
हुआ जहाँ मतदान तो, बिगड़ गए हालात।
फिर से निकलेगी सुमन, गिद्धों की बारात।।
राजनीति में अब सुमन, नैतिकता है रोग।
लाखों में बिकते अभी, दो कौड़ी के लोग।।
चीजें मँहगीं सब हुईं, लोग हुए हलकान।
केवल सस्ती है सुमन, इन्सानों की जान।।
संसाधन विकसित हुए, मगर बुझी ना प्यास।
वादा करते हैं सभी, टूटा है विश्वास।।
होते हैं अब हल कहाँ, आम लोग के प्रश्न।
चिन्ता दिल्ली को नहीं, रोज मनाते जश्न।।
प्रायः पूजित हैं अभी, नेता औ भगवान।
काम न आए वक्त पर, तब रोता इन्सान।।
सुनता किसकी कौन अब, प्रायः सब मुँहजोर।
टूट रहे हैं नित सुमन, सम्बन्धों की डोर।।
रोने से केवल सुमन, क्या सुधरेगा हाल।
हाथ मिले जब लोग के, सुलझे तभी सवाल।।
सोना हो चाहत अगर, सोना हुआ मुहाल।
दोनो सोना कब मिले, पूछे सुमन सवाल।।
खर्च करोगे कुछ सुमन, घटे सदा परिमाण।
ज्ञान, प्रेम बढ़ते सदा, बाँटो, देख प्रमाण।।
अलग प्रेम से कुछ नहीं, प्रेम जगत आधार।
देख सुमन ये क्या हुआ, बना प्रेम बाजार।
प्रेम त्याग अपनत्व से, जीवन हो अभिराम।
बनने से पहले लगे, अब रिश्तों के दाम।।
जीवन के संघर्ष में, नहीं किसी से आस।
भीतर जितने प्रश्न हैं, उत्तर अपने पास।।
देखो नित मिलता सुमन, जीवन से सन्देश।
भला हुआ तो ठीक पर, नहीं किसी को क्लेश।।
दोनों कल के बीच में, फँसा हुआ है आज।
कारण बिल्कुल ये सुमन, रोता आज समाज।।
जैसे जैसे लोग के, बदले अभी स्वभाव।
मौसम पर भी देखिए, उसके अलग प्रभाव।।
जाड़े में बारिश हुई, औ बारिश में धूप।
गरमी में पानी नहीं, बारिश हुई अनूप।।
कौन सफाई अब करे, जब मरते हैं जीव।
बर्बर मानवता सुमन, गिद्ध हुए निर्जीव।।
नीलकंठ पक्षी अभी, कहाँ देखते लोग।
सदियों से जो कर रहे, दूर फसल के रोग।।
चूहे नित करते सुमन, दाने का नुकसान।
डरे हुए हैं साँप भी, जहरीला इन्सान।।
घास कहाँ मिलते सुमन, हिरण,गाय लाचार।
शेर सहित हैं घात में, बैठे हुए सियार।।
गंगा जीवनदायिनी, आज हुई बीमार।
नदियाँ सारी सूखतीं, कारण सुमन विचार।।
चली सियासत की हवा, नेताओं में जोश।
झूठे वादे में फँसे, लोग बहुत मदहोश।।
दल सारे दलदल हुए, नेता करे बबाल।
किस दल में अब कौन है, पूछे लोग सवाल।।
मुझ पे गर इल्जाम तो, पत्नी को दे चांस।
हार गए तो कुछ नहीं, जीते तो रोमांस।।
जनसेवक राजा हुए, रोया सकल समाज।
हुई कैद अब चाँदनी, कोयल की आवाज।।
नेता और कुदाल की, नीति-रीति है एक।
समता खुरपी सी नहीं, वैसा कहाँ विवेक।।
कलतक जो थी झोपड़ी, देखो महल विशाल।
जाती घर तक रेल अब, नेता करे कमाल।।
धवल वस्त्र हैं देह पर, है मुख पे मुस्कान।
नेता कहीं न बेच दे, सारा हिन्दुस्तान।।
सच मानें या जाँच लें, नेता के गुण चार।
बड़बोला, झूठा, निडर, पतितों के सरदार।।
पाँच बरस के बाद ही, नेता आये गाँव।
नहीं मिलेंगे वोट अब, लौटो उल्टे पाँव।।
जगी चेतना लोग में, है इनकी पहचान।
गले सुमन का हार था, हार गए श्रीमान।।
रहते हैं खुश लोग कम, खुश दिखने पर जोर।
कोशिश है मुस्कान में, छुपा ले मन का चोर।।
बदल रहा इन्सान का, अपना मूल स्वभाव।
दुखियों को अब देखकर, उठे न कोमल भाव।।
शंका में प्रायः सभी, टूट रहा विश्वास।
रिश्तों में मिलते कहाँ, मीठा सा एहसास।।
मुँह खोलो मिल जायेंगे, एक से एक सुझाव।
देते खूब सुझाव वो, जिसके माथ तनाव।।
प्रायः चेहरे पर शिकन, भले सुमन-सा नाम।
हँसता चेहरा खोजना, कितना मुश्किल काम।।
चमत्कार विज्ञान का, सुविधा मिली जरूर।
भौतिक दूरी कम हुई, अपनेपन से दूर।।
होती थी कुछ देर पर, चिट्ठी से सम्वाद।
मोबाइल में है कहाँ, उतना मीठा स्वाद।।
साक्षर थी भाभी नहीं, भैया थे परदेश।
बातें दिल की सुमन से, लिखवाती संदेश।।
विश्व-ग्राम ने अब सुमन, लाया है दुर्योग।
गाँवों में मिलते नहीं, सीधे साधे लोग।।
यूँ रोया पर्वत सुमन, शायद पहली बार।
रोते हैं सब देखकर, मानव का संहार।।
प्राकृतिक सौन्दर्य का, इक अपना है गीत।
कोशिश है विज्ञान की, दर्ज करें हम जीत।।
नियति-नियम के संग में, चले सदा विज्ञान।
फिर क्यों देखेंगे सुमन, यह भीषण नुकसान।।