परिचय:
नाम : क्षेत्रपाल शर्मा
पिता: स्व् लीलाधर शर्मा
जन्म: ०५-०९-१९५० अलीग़ढ
शिक्षा: M.A. English B.A. Honours Hindi with English as main. Joint Director (Retd.)(Official Language)
सम्पर्क :A-8/29, 3rd floor Sec 15 Rohini ,Delhi 85. ,E.S.I.C. C.I.G.Marg NewDelhi 110002 Mob no. 9711477046 Email kpsharma05@yahoo.co
१.
रात रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥
सुरभि को गोदी लिए गुमशुम खडी थी शाम से
वह सजीली नयन-धन्वा थी मेरे ही आसपास
क्यों कहे कुछ आप गाफ़िल हो गए तो हो गए
ताल को यूं सूखते - भरते न देखा आपने ॥
दिवस का हर प्रहर सोया रहा है शाख पर ,
नाम : क्षेत्रपाल शर्मा
पिता: स्व् लीलाधर शर्मा
जन्म: ०५-०९-१९५० अलीग़ढ
शिक्षा: M.A. English B.A. Honours Hindi with English as main. Joint Director (Retd.)(Official Language)
सम्पर्क :A-8/29, 3rd floor Sec 15 Rohini ,Delhi 85. ,E.S.I.C. C.I.G.Marg NewDelhi 110002 Mob no. 9711477046 Email kpsharma05@yahoo.co
१.
रात रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥
सुरभि को गोदी लिए गुमशुम खडी थी शाम से
वह सजीली नयन-धन्वा थी मेरे ही आसपास
क्यों कहे कुछ आप गाफ़िल हो गए तो हो गए
ताल को यूं सूखते - भरते न देखा आपने ॥
दिवस का हर प्रहर सोया रहा है शाख पर ,
दोष मौसम का नहीं
बेल जलकुंभी सी हर ओर अब छतरा गई है ,
जी -जी उठे जजबात तिल -तिल मरते न देखा आपने ॥
जो सुमन थे बिखरा दिए चंदेर में ,अंधेर में
सूरते हाल में मकसद मेरा जीना यहां
क्या भला औ क्या बुरा ये आपका है मामला
रात रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥
2.
साठे मन पर मौसम की मार I
जीत आपकी हम गए हार II
फूल हो , तितली हो या हो अवतार,
बोल हैँ कि रिमझिम- सी प्यारी झनकार,
चितवन है, भावोँ की भाषा श्रृगार,
टोना है , टमना है , जादू हथियार
शिकवोँ से सराबोर , मोहक मनुहार I
जीत आपकी.... II
फूलौँ से लदगद मेँ उलझ-उलझ जाएँ
गीली-सी पगडँडी पर मेघा हरषाएँ
चेहरे पर इंद्र- धनु
गुजरे पल , क्षण-प्रतिक्षण एसे तरसाएँ
कहने को बाकी क्या ! इत्तासा प्यार I
जीत आपकी ....
3.पद
हलधर , ठेके पर रहियो जाइ l l
हल और बैल बिक गए , बाकी खेत रहेंगे बिकाइ l l
नेता -प्रधान देश को कहते उलट , कृषी प्रधान,
हुए भगोडे कारीगर सब , शहर परे भैराइ ll
मीरासी अब मीर कहावें , सब चालीसा गाइ,
गौरा पंत " शिवानी" को है ? पूछें कहा बताइ !
बरसत लछमी ठेकन पर , सरसुति बड़ी लजाइ,
बिना श्रम, छिरकत खुशबू सब , कहौ करौ का जाइ ll
सीख बड़ेन की नहिं सुहावे , देवें गाल बजाइ ,
हे प्रभु! ये रस्ते पर आवें , मारग देव सुझाइ ll
बेल जलकुंभी सी हर ओर अब छतरा गई है ,
जी -जी उठे जजबात तिल -तिल मरते न देखा आपने ॥
जो सुमन थे बिखरा दिए चंदेर में ,अंधेर में
सूरते हाल में मकसद मेरा जीना यहां
क्या भला औ क्या बुरा ये आपका है मामला
रात रानी को कभी झरते न देखा आपने ॥
2.
साठे मन पर मौसम की मार I
जीत आपकी हम गए हार II
फूल हो , तितली हो या हो अवतार,
बोल हैँ कि रिमझिम- सी प्यारी झनकार,
चितवन है, भावोँ की भाषा श्रृगार,
टोना है , टमना है , जादू हथियार
शिकवोँ से सराबोर , मोहक मनुहार I
जीत आपकी.... II
फूलौँ से लदगद मेँ उलझ-उलझ जाएँ
गीली-सी पगडँडी पर मेघा हरषाएँ
चेहरे पर इंद्र- धनु
गुजरे पल , क्षण-प्रतिक्षण एसे तरसाएँ
कहने को बाकी क्या ! इत्तासा प्यार I
जीत आपकी ....
3.पद
हलधर , ठेके पर रहियो जाइ l l
हल और बैल बिक गए , बाकी खेत रहेंगे बिकाइ l l
नेता -प्रधान देश को कहते उलट , कृषी प्रधान,
हुए भगोडे कारीगर सब , शहर परे भैराइ ll
मीरासी अब मीर कहावें , सब चालीसा गाइ,
गौरा पंत " शिवानी" को है ? पूछें कहा बताइ !
बरसत लछमी ठेकन पर , सरसुति बड़ी लजाइ,
बिना श्रम, छिरकत खुशबू सब , कहौ करौ का जाइ ll
सीख बड़ेन की नहिं सुहावे , देवें गाल बजाइ ,
हे प्रभु! ये रस्ते पर आवें , मारग देव सुझाइ ll