परिचय:
जन्म:27 अक्तूबर 1968 को मथुरास्थ माथुर चतुर्वेद परिवार में। कविरत्न स्व. श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी से काव्य शिक्षा। सम्प्रति मुहतरम तुफ़ैल चतुर्वेदी साहब से ग़ज़ल तकनीक की शिक्षा। मुम्बई में सिक्यूरिटी एक्विपमेंट्स के व्यवसाय में संलग्न। छन्द, ग़ज़ल, हाइकु, गीत-नवगीत, तुकांत-अतुकांत कविताओं के अलावा गद्य लेखन। मंच संचालन। आकाशवाणी मथुरा-वृन्दावन और आकाशवाणी मुंबई से कविता पाठ। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन।
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ये कलियुग है, इसे द्वापर समझ कर भाव खाओ मत
हम इनसाँ हैं, मुसीबत में - बहुत कुछ भूल जाते हैं
अगर इस दिल में रहना है तो फिर ये दिल दुखाओ मत
न ख़ुद मिलते हो, ना मिलने की सूरत ही बनाते हो
जो इन आँखों में रहना है तो फिर आँखें चुराओ मत
भला किसने दिया है आप को ये नाम 'दुःखभंजन'
सलामत रखना है ये नाम तो दुखड़े बढ़ाओ मत
मुआफ़ी चाहता हूँ, पर मुझे ये बात कहने दो
तुम अपने भक्तों के दिल को दुखा कर मुस्कुराओ मत
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१.
अगर अपना समझते हो तो फिर नखरे दिखाओ मतये कलियुग है, इसे द्वापर समझ कर भाव खाओ मत
हम इनसाँ हैं, मुसीबत में - बहुत कुछ भूल जाते हैं
अगर इस दिल में रहना है तो फिर ये दिल दुखाओ मत
न ख़ुद मिलते हो, ना मिलने की सूरत ही बनाते हो
जो इन आँखों में रहना है तो फिर आँखें चुराओ मत
भला किसने दिया है आप को ये नाम 'दुःखभंजन'
सलामत रखना है ये नाम तो दुखड़े बढ़ाओ मत
मुआफ़ी चाहता हूँ, पर मुझे ये बात कहने दो
तुम अपने भक्तों के दिल को दुखा कर मुस्कुराओ मत
२.
न तो अनपढ़ ही रहा और न ही क़ाबिल हुआ मैंख़ामखा धुन्ध तेरे स्कूल में दाख़िल हुआ मैं
मेरे मरते ही ज़माने का लहू खौल उठ्ठा
ख़ामुशी ओढ़ के आवाज़ में शामिल हुआ मैं
ओस की बूँदें मेरे चारों तरफ़ जम्अ हुईं
देखते-देखते दरिया के मुक़ाबिल हुआ मैं
मुक़ाबिल - सदृश / समक्ष
अब भी तक़दीर की जद में है मेरा मुस्तक़बिल
शर्म आती है ये कहते हुये “क़ाबिल हुआ मैं”
मुस्तक़बिल - भावी / भविष्य
कभी हसरत, कभी हिम्मत, कभी हिकमत बन कर
बेदिली जब भी बढ़ी और जवाँदिल हुआ मैं
हिक्मत - युक्ति, बुद्धिमत्ता
फाएलातुन फ़एलातुन फ़एलातुन फालुन
बहरे रमल मुसम्मन मखबून मुसक्कन
2122 1122 1122 22
३.
जल को ज़मीं, ज़मीन को सरगर्मियाँ मिलींतब जा के इस दयार को ख़ुशफ़हमियाँ मिलीं
सूरज ने चन्द्रमा को उजालों से भर दिया
हासिल ये है कि रात को परछाइयाँ मिलीं
अब्रों ने ज़र्रे-ज़र्रे को पानी से धो दिया
बाद उस के आसमान को बीनाइयाँ मिलीं
अब्र - बादल, ज़र्रा-ज़र्रा - कण-कण, बीनाई - दृष्टि / नज़र
दैरो-हरम हों या कि बयाबाँ, हरिक जगह
शेखी बघारती हुई अय्याशियाँ मिलीं
दैरोहरम - मन्दिर-मस्जिद, बयाबाँ - निर्जन स्थान
उड़ते हुये परिन्द - हमारी 'व्यथा' न पूछ
दरकार शाहराह थी - पगडण्डियाँ मिलीं
परिन्द - पक्षी, व्यथा - दर्द, पीर, तकलीफ़, शाहराह - राजमार्ग
क़िस्मत को ये मिला तो मशक़्क़त को वो मिला
इस को मिला ख़ज़ाना उसे चाभियाँ मिलीं
मशक़्क़त - मज़दूरी
जब-जब किया है वक़्त से हमने मुक़ाबला
उस को बुलन्दियाँ हमें गहराइयाँ मिलीं
रहमत का राग अपनी जगह ठीक है मगर
जिसने बढाया हाथ उसे रोटियाँ मिलीं
कितने ही नौज़वान ज़मींदोज़ हो गये
वो तन है ख़ुशनसीब जिसे झुर्रियाँ मिलीं
हमने दिलेफ़क़ीर टटोला तो क्या बताएँ
ख़ामोशियों से तंग परेशानियाँ मिलीं
तुम को बता रहा हूँ किसी को बताना मत
ख़ुद को किया ख़राब तभी मस्तियाँ मिलीं
सौ-फ़ीसदी मिठास किसी में नहीं 'नवीन'
जितनी ज़बाँ हैं सब में कई गालियाँ मिलीं
मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन
221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ
४.
ज़िन्दा रहने के लिये और बहाने कितनेएक तमाशे के लिये और तमाशे कितने
बाँह फैलाये वहाँ कब से खड़ा है महबूब
रूह बदलेगी बदन और न जाने कितने
आग पानी से बचाओ तो हवा की दहशत
ज़िन्दगी अक्स बनाये तो बनाये कितने
अपनी यादों में न पाओ तो नज़र से पूछो
और होते भी हैं यारों के ठिकाने कितने
जैसे आये हैं यहाँ वैसे ही जाना होगा
बात सच है ये मगर बात ये माने कितने
५.
ग़नीमत से गुजारा कर रहा हूँमगर चर्चा है जलसा कर रहा हूँ
ख़ुदाई तुझसे तौबा कर रहा हूँ
बदन का रंग नीला कर रहा हूँ
ठहरना तक नहीं सीखा अभी तक
अजल से वक़्त जाया कर रहा हूँ
अजल - आदि
तसल्ली आज भी है फ़ासलों पर
सराबों का ही पीछा कर रहा हूँ
सराब - मृग तृष्णा
मेरा साया मेरे बस में नहीं है
मगर दुनिया पे दावा कर रहा हूँ
६.
सुनाना आप अपने दिल की बातेंमुझे कहने दें मेरे दिल की बातें
सुनी थीं मैंने माँ के पेट में ही
निवालों को तरसते दिल की बातें
न जुड़ जाओ अगर इन से तो कहना
ज़रा सुनिये तो टूटे दिल की बातें
तमन्नाओं पे हावी है तकल्लुफ़
चलो सुनते हैं सब के दिल की बातें
टिका दे जो भी अपने कान इस पर
ये दिल बोले उसी के दिल की बातें
मुझे कुछ भी नहीं आता है लेकिन
समझता हूँ तुम्हारे दिल की
शकर वालों को भी हसरत शकर की
कोई कैसे सुनाये दिल की बातें
७.
मुझे पहले यूँ लगता था करिश्मा चाहिये मुझकोमगर अब जा के समझा हूँ क़रीना चाहिये मुझको
करिश्मा – चमत्कार, क़रीना – तमीज़, शिष्टता
तो क्या मैं इतना पापी हूँ कि इक लाड़ो नहीं बख़्शी
बहू के रूप में ही दे – तनूजा चाहिये मुझ को
तनूजा – बेटी
हिमालय का गुलाबी जिस्म इन हाथों से छूना है
कहो सूरज से उग भी जाय, अनुष्का चाहिये मुझको
अनुष्का – रौशनी, सूरज की पहली किरण
करोड़ों की ये आबादी कहीं प्यासी न मर जाये
हरिक लाख आदमी पर इक बिपाशा चाहिये मुझको
बिपाशा – नदी
नहीं हरगिज़ अँधेरों की हिमायत कर रहा हूँ मैं
नई इक भोर की ख़ातिर शबाना चाहिये मुझको
८.
बदल बदल के भी दुनिया को हम बदलते क्यागढ़े हुये थे जो मुर्दे वो उठ के चलते क्या
डगर दिखाने गये थे नगर जला आये
हवस के शोले दियों की तरह से जलते क्या
तरक़्क़ियों के के तमाशों ने मार डाला हमें
अनाज़ उगता नहीं ख़ाक ही निगलते क्या
हलाल हो के भी हमसे यक़ीन छूटा नहीं
झुलस चुका था जो तन उस से बाल उचलते क्या
हरिक सवाल ज़रूरी हरिक ज़वाब अहम
“हम आ चुके थे क़रीब इतने बच निकलते क्या”
९.
जो कुछ भी हूँ पर यार गुनहगार नहीं हूँदहलीज़ हूँ, दरवाज़ा हूँ, दीवार नहीं हूँ
छह गलियों से असबाब चले आते हैं मुझ में
किस तरह से कह दूँ कि ख़रीदार नहीं हूँ
छह गली - छह इंद्रिय , असबाब - सामान
कल भोर का सपना है कोई बोल रहा था
इस पार ही रहता हूँ मैं उस पार नहीं हूँ
सब कुछ हूँ मगर वो नहीं जिस का हूँ तलबगार
मंज़र हूँ, मुसव्विर भी हूँ, मेयार नहीं हूँ
तलबगार - ढूँढने वाला / इच्छुक, मंज़र - दृश्य, मुसव्विर - चित्रकार, मेयार - स्तर
जब कुछ नहीं करता हूँ तो करता हूँ तसव्वुर
इस तरह से जीता हूँ कि बेकार नहीं हूँ
१०.
हरकत न हो तो आब-ओ-हवा भी न टिक सकेआमद बग़ैर माल-ओ-मता भी न टिक सके
रंजिश कि प्यार कुछ तो है रेत और लह्र में
साहिल पे मेरे पाँव ज़रा भी न टिक सके
हद में रहे बशर तो मिलें सौ नियामतें
हद भूल जाये फिर तो अना भी न टिक सके
पानी बग़ैर टिक न सकेगी धरा, मगर
पानी ही पानी हो तो धरा भी न टिक सके
सच में ये आदमी जो निभाये मुहब्बतें
टकसाल छोड़िये जी टका भी न टिक सके
बदहाल आदमी को डरायेगी मौत क्या
नंगा हो सामने तो बला भी न टिक सके