परिचय :
जन्म : 8th May 1956 को जमशेदपूर (टाटा नगर)
जाने माने कवि, गीतकार, नाटककार, लेखक एवं ज्योतिषीEmail sharman.jsr@rediffmail.com
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१.
उठो तोडो कारा तुम निर्भय होकर आज
अपने चिंतन-मनन से बदलो भ्रष्ट समाज
आओ मिलकर शपथ लें मर-मिटने को आज
सबसे पहले हम चलें धरती माँ के पास
कब-तक रहेगा ठगता बदल-बदलकर भेष
हर कर्म के बाद रहे कर्मों का फल शेष
किस पर हाय पड़ी नहीं मज़बूरी की मार
मत हँसो कल आयेगी तेरी बारी यार
ऐसी क्या भूल हुई कि टूटे मन के तार
कारवाँ गुजर गया अब खाली रहा गुबार
2.
ओले टपके खेत में, बेघर हुए किसान
पानी चढ़ता ही गया, डूब गये खलिहान
अब के बरस मौसम ने बदला दिल का हाल
इतने आँसू बरसे कि नयन हुए बेहाल
ढूँढ रहे औषधी ये कहकर वैद्य-हकीम
अच्छा होता कि रहते मिलकर राम-रहीम
सुनके उसकी बाँसुरी तन-मन हुआ विभोर
छवि देखूँ घनश्याम की, अपने चारों ओर
अशुभ कृत का सदा करो जीवन में परिहार
वर्ना नौका डुबेगी अगर छुटी पतवार
जीवन सफल हो जाये ऐसा हो व्यापार
मृत्यु से पहले कर ले खुद को तू तैयार
बुझे कभी न साथी जन-जागरण की मशाल
रण छोड़कर भागे शत्रु, चमके तेरा भाल
3.
सत् को न जाना जिसने वही मचाये शोर
अहिंसा के मंदिर में, हिंसा पकड़ी जोर
सत्-अहिंसा का पुजारी रहा हमेशा मौन
कहते थे बापू किन्तु माना उनकी कौन
चले गये गाँधी और आया गांधीवाद
टूट गये सब जैसे आपस के संवाद
बह रही है रग-रग में बापू की तासीर
निश्चित है कि टूटेगा असत्य का प्राचीर
आज भी हैं, कल भी थे साहब और गुलाम
कब मिलेगा बल बोलो निर्बल को हे राम !
अगर करे अमल कोई, दीक्षा करे कमाल
बेशक चेला तर जाय, सदगुरु हुए निहाल
घिरे विपत्ति के बादल, टपके निशदिन लोर
सुख चाहा लेकिन हाय, दुख ही रहा बटोर
बीज नफरत का रोपे, करते छुप के वार
घात करने वालों की लंबी हुई कतार
मिले नही गरीबों को बिन पैसे इन्साफ
देश के रखवाले ही करे तिजोरी साफ
आते है उस पार से चुने हुए कुछ लोग
जब-जब होती है हानि, देते अपना योग
कहना था जो कह दिया, आगे सोच-विचार
कहे माधव अर्जुन से अद्भुत जीवन-सार
4.
आपस में मिल के रहें, झलके मन का प्यार
ऐसी वाणी बोलिए, दूर करे तकरार
काजल की ये कोठरी, देती सबको दाग
साबित बचा ना कोई, भाग सके तो भाग
ज्ञानरूपी तलवार से जो काटे निज शीश
देते हैं भगवान उस बंदे को आशीष
आज मेरी, कल तेरी, बारी-बारी यार
उठेगी सबकी डोली, तय है चार कहार
5.
मन को अति निर्बल करे, तन को भी बीमार
लालच वो बला है जो देती मति को मार
न जाने कैसा होगा, किसका होगा राज
राजनीति की पटकथा, सुन-सुन लगती लाज
बुझ रही क्यों बच्चों की जलती हुई मशाल
आज हमारे सामने, है गंभीर सवाल
गँवा रहे हैं किसलिए बच्चे अपनी जान
पौधे की उदासी से, है माली अनजान
शिक्षा तो भरपूर मिली, दौलत हुई अपार
दीक्षा बिना जीवन ये, नौका बिन पतवार
6.
सुनो, सुनाता हूँ प्रिय ! अचरज की इक बात
पूर्वजों ने दी हमको, प्रेमबूटी सौगात
कर ले प्रेमबूटी का, उबटन जैसी लेप
स्वर्ण-सदृश तन होगा, मन होगा निर्लेप
हाथ पकड़ो जिसका भी, संग करो निर्वाह
प्रेमबूटी दिखलाये, सबको सीधी राह
जाना है सब छोड़ के, है सबको ये ज्ञान
लेकिन कभी ना छोड़े, झूठा निज अभिमान
हाँ, अपना तो है यारों, चलता-फिरता योग
चख ले जो प्रेमबूटी, हरदम रहे निरोग
7.
पकड़ा है इस देश को, कोई भूत-पिशाच
संत करे कुकर्म यहाँ, नेता तिकडमबाज
अंग्रेजों ने डाली है, नीव यहाँ बेजोड़
कोई देश कोड़ रहा, कोई रहा निचोड़
भारत की कुंडली में ये कैसा है योग
अलग राज्य का दर्जा, मांगे नेता लोग
जन्मा था इस देश में, नंगा एक फकीर
मनमुख जिसका एक था जैसे संत कबीर
कहीं न हमको ले डूबे, आपस की ये होड
कुछ लोगों के हाथ में, है ताकत बेजोड़
मुद्दा बहुत उठायेंगे, दे डंके की चोट
लेकिन सोच-विचार के, देना अपना वोट
कब होगा खुशहाल ये हमारा हिन्दुस्तान
जिसके लिये वीरों ने दे दी अपनी जान
दिन-पर-दिन निर्बल हुए, देकर यारों वोट
हमको मिली ना रोटी, वो खाए अखरोट
सावधान रहो, न चुनो ऐसे उमीदवार
जो करते गरीबों के सपनों का व्यापार
इतना तो है जनता के हाथों में अधिकार
भीड़ से थोडा हट के, आओ करें विचार
कैसे मिलन होगा यदि मन में बैठा चोर
नगर ढिंढोरा पीटे, व्यर्थ मचाये शोर
उलझे धागे की जल्दी, मिले न कोई छोर
तनिक ध्यान से खोलिए, है अद्भुत ये डोर
मिलते हैं सम्राट मगर मिलते नहीं फकीर
मिल जाए तो जानिए, वो बदले तक़दीर
देखूँ लेकिन ना दिखे, है आँखों में लोर
कैसे देखूँ चन्द्रमा, घटा घिरी घनघोर
गुजर रहे जिस दौर से, ऐसा है ये दौर
मेहनत करनेवाला, तरसे एक-एक कौर
8.
बात जो इतनी जाने, व्यर्थ न जीवन खोय
मिटटी पे इत्र पड़े, मगर इत्र न मिटटी होय
न समझे, समझ के भी है साईं अनमोल
तुझसे अच्छा साज है, बजे कि निकले बोल
उलझे धागे की बंधू, मिले न जल्दी छोर
तनिक ध्यान से खोलिए , है अदभुत ये डोर
पूछा क्यों यदि ज्ञान है, पूछन माने सीख
बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख
न योग, न कोई समाधि, ऐसी उठी तरंग
न गिरह, न कोई कन्नी, फिर भी उड़े पतंग
जब चाहूँ देखूं उसे अपने चारों ओर
मेरा उससे है रिश्ता ज्यों पतंग से डोर
कैसे मिलन होगा यदि मन में बैठा चोर
नगर ढिंढोरा पीटे, व्यर्थ मचाय शोर
मिलेंगे इस कलियुग में 'राम' मगर ये मान
पहले खुद से पूछो कि क्या तुम हो हनुमान
छोड़ कर गृहस्थी जो लेता है संन्यास
वो नहीं पक्का योगी,कच्चा है विश्वास
देखूं लेकिन ना दिखे, है आँखों में लोर
कैसे देखूं चंद्रमा, घटा घिरी घनघोर
साईं कृपा ने मेरी, ऑंखें दी है खोल
धन-दौलत की चाह नहीं, साईं मेरा अनमोल
एक ही बाती बार के, सौ घर करे अँजोर
साईं के संयोग से, नयना लगते भोर
साईं भक्तों से कहूँ , इधर-उधर मत डोल
खिडकी से मत झांक तू , दरवाजे को खोल
रास-डोल ना रहे जल कैसे खिंचा जाय
आँगन कुँआ पड़ा रहे, अतिथि प्यासा जाय
मिलते हैं सम्राट मगर, मिलते नहीं फकीर
मिल जाय तो जानिए वो बदले तक़दीर
ये अनमोल-रतन जिसे कहते हैं सब प्यार
मिल जाए तो बांटिए , भूखा है संसार
उधेड़-बुन में मन रहा, हुआ न मुझको ज्ञान
अंत में जाना मैंने हरि हीरे की खान
शर्मन् कहता है सुनो, चाहे मान-न-मान
धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष, सब साईं के हाथ
दुनिया इक तमाशा है, देख इसे चुपचाप
पानी जितना उबले, निकले उतनी भाप
कुँए में है श्रोत अगर क्या चिंता की बात
जितना चाहे खींच लो, लगे रहो दिन-रात
साईं मुझमे है सुनो, बात कहूँ मैं सांच
ज्वाला के जितने निकट, उतनी लगती आंच
अज्ञात हाथों से वही, रूप अनेक बनाय
ऊँगली ज्यों कुम्हार की, चलती घट बन जाय
कोई मंतर नहीं जो कानों में दूँ फूँक
मेरा साईं कह रहा, ये बातें सब झूठ
जीवन में संघर्ष है, मत इससे तू भाग
भोजन बनता ही नहीं, बिन चूल्हा बिन आग
साईं का मांगे कोई होने का प्रमाण
तेरे अंदर है वही, कर ले मूरख ध्यान
देह को पहुँचायेंगे मिलकर सब श्मशान
साईं-साईं बोलिए, है जब तक ये प्राण
जब-जब घिरे अँधेरा, खोजे नयन प्रकाश
दीपक ढ़ूँढ़ो है कहाँ, उसकी हुई तलाश
आँगन सूना रहे ना खाली ये खलिहान
साईं इतना दीजिए , तुझसे हटे न ध्यान
गुजर रहे जिस दौर से ऐसा है ये दौर
मेहनत करनेवाला , तरसे एक-एक कौर
चाहे तुम तीर्थ करो या करो खूब दान
भाग्य सँवारे न सँवरे , अगर न होगा ज्ञान
हाथ ना आया कुछ भी जीवन हुआ तमाम
मर गए जपते-जपते, हुआ न मन निष्काम
इक चुटकी में द्वार खुला, दुल्हन गयो समाय
ज्यों ढ़ेला माटी का, जल में गयो बिलाय
ऊँचे-ऊँचे भवन हैं, केवल भोग-विलास
मेरी कुटिया में हरि, आकर करे निवास
एक दिन पर्दा उठेगा, देखेंगे सबलोग
कब-तक रखेगा छिपाकर अंतर्मन का योग
जितना जो कुचक्र रचे, आज वही भगवान्
पर क्या कभी मताल को लगता भी है ध्यान
श्रद्धा कितनी है यही अपने मन से पूछ
साईं उनके साथ है जो करते महसूस
उडी आँगन की चिड़िया , देखो पंख पसार
मेरा मन-पाखी उड़ा , ज्योंहि सुनी पुकार
साईं इतना कीजिए कि बिगड़े ना हिसाब
आऊँ तेरी शरण में लेकर सही किताब
पढ़-लिखकर अनपढ़ रहा, पढ़ा ना उसका लेख
साईं कहता है सुनो, '' सबका मालिक एक ''
सीधा मेरा साईं न कोई लाग-लपेट
साईं-साईं बोलिए, होगी एक-दिन भेंट
साईं की भक्ति जग में है सचमुच बेजोड
हो सके तो सबको तू इस धागे से जोड़
लगती है जवानी में ये दुनिया रंगीन
अंत घडी तू तडपे, जैसे जल बिन मीन
घट फूटने से पहले, खोज ले तू निकास
खारा जल मीठा लगे, अगर लगी हो प्यास
जीवन के कुहासे में नज़र न आती रात
साईं मुझको ललचाय, लगती कभी न थाह
साईं-साईं बोलकर प्रकट करूँ उदगार
अगर देखना है उसे, अपना शीश उतार
राम-रहीम मिले जहाँ , साईं का दरबार
है अदभुत संयोग ये मानव में अवतार
साईं की भाषा सीधी, सीधा है संकेत
ऊँगली उठा के बोले, " सबका मालिक एक "
पूछती है ये धरती, पुछ रहा आकाश
किसने ये कुचक्र रचा, किसने किया विनाश
फैले हैं चारों तरफ, हिंसा और बलात्
सत् क्या है जो न जाने, वही करे उत्पात
छोटी-छोटी बात में है जीवन का सार
उसके आगे ड़ाल दे , नफ़रत के हथियार
सबका मालिक एक है, राम-रहीम में देख
एक अक्षररूप है वही ओम् साईं में देख