02 जून 1946 को टीकमगढ़, मध्य प्रदेश में जन्म.
1.
जब कुछ नहीं बना तो हमने इतना कर दिया..खाली हथेली पर दुआ का सिक्का धर दिया।
कब तक निभाते दुश्मनी हम वक्त से हर दिन
इस बार जब मिला वो तो बाँहों में भर लिया।
उस गाँव के बाशिंदों में अजीब रस्म है,
बच्ची के जन्म लेते ही गाते हैं मर्सिया।
बदली हुकूमतें मगर न किस्मतें बदलीं,
मुश्किलजदा लोगों को सबने दर बदर किया।
मुद्दा कोई हो, उसपे बोलना तो बहुत दूर,
संजीदा हो के सोचना भी बंद कर दिया।
2.
दुःख दर्द की मिठास को खारा नहीं बना.खामोशी को ज़ुबान दे, नारा नहीं बना।
जिसने जमीन से लिया है खाद औ’ पानी
उस ख्वाब को फ़लक का सितारा नहीं बना।
वो बेज़ुबाँ है पर तेरी जागीर तो नहीं,
उसको, शिकार के लिए, चारा नहीं बना।
घुटने ही टेक दे जो सियासत के सामने,
अपने अदब को इतना बिचारा नहीं बना।
जज़्बात कोई खेल दिखाने का फ़न नहीं
जज़्बात को जादू का पिटारा नहीं बना।
इंसान की फितरत तो है शबनम की तरह ही,
अब उसको, जुल्म कर के, अंगारा नहीं बना।
3.
एक किताब पड़ी थी अलमारी में कई महीने सेमुद्दत बाद मिली तो रोई लिपट-लिपट कर सीने से।
कहा सुबकते हुए- ‘निर्दयी अब आए हो मिलने को
जब गाढ़े संबंधों के आवरण हो गए झीने से
और जरा देखो, कैसे बेनूर हो गए ये अक्षर
कभी चमकते थे जो अंगूठी में जड़े नगीने से
और याद है? जब आँखें भारी होते ही यहाँ-वहाँ
सो जाते तुम मुझे सिरहाने रखकर बडे करीने से
किस मुँह से अब अपना ये सर्वस्व सौंप दूँ फिर तुमको
धूल धूसरित देह पड़ी है लथपथ आज पसीने से।
4.
हो सके तो ज़िन्दगी को शायरी कर दे खुदा!शायरी में ज़िन्दगी के रंग सब भर दे खुदा!
और कुछ चाहे भले ही दे, न दे, मर्ज़ी तेरी
ज़िन्दगी को जीने लायक तो मुकद्दर दे खुदा!
क्या करेंगे सिर्फ़ दीवारें, या छत लेकर यहाँ,
देना है तो एक मुकम्मल छोटा-सा घर दे खुदा!
दिल के हिस्से में छलकता एक दरिया डाल दे,
फिर समूचे जिस्म को चाहे तो संग कर दे खुदा!
चैन दिन का, रात की नींदें उड़ा कर ले गया,
खौफ की आँखों में भी थोड़ा-सा डर भर दे खुदा!
सर कलम करने को बैठे हैं यहाँ आमादा जो,
उनका बस एक बार ही सजदे में सर कर दे खुदा!
5.
उड़ने का हुनर आया जब हमें गुमां न थाहिस्से में परिंदों के कोई आसमां न था।
ऐसा नहीं कि ख्वाहिशें नहीं थी हमारी,
पर उनका सरपरस्त कोई मेहरबां न था।
एक ख्वाब क़त्ल करके, एक ख्वाब बचाते,
अपने जिगर में ऐसा बड़ा सूरमा न था।
तन्हा सफर में इसलिए तन्हा ही रह गए
थे रास्ते बहुत से, मगर कारवाँ न था।
परदेस गए बच्चे तो वहीं के हो गए
इस देस में हुनर तो था पर कद्रदाँ न था।
6.
यादों के खज़ाने में कितने लोग भरे हैंबिछुड़े हैं जब से हर घड़ी बेचैन करे हैं।
तस्वीरों के अंदर भी वे जिंदा-से लगे हैं
और हम हैं कि उनके बिना जिंदा भी मरे हैं।
इस झूठे भरम में कि वे कल लौट आएं फिर
सीने पे कब से सब्र का एक बोझ धरे हैं।
एक ओर सियाही है तो एक ओर रोशनी,
अपने ही साये से ज्यों हर वक्त डरे हैं।
थमता नहीं सैलाब, आँधियों में मोह की
तर आस्तीं है, आँसुओं के मोती झरे हैं।
७.