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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

सत्येंद्र गुप्ता


१.

उनके इंतज़ार का, हर पल ही मंहगा था
हर ख़्वाब मैंने उस पल देखा सुनहरा था।

दीवानगी-ए-शौक मेरा ,मुझसे न पूछ दोस्त
दिल के बहाव का वह जाने कैसा जज़्बा था।

मेरे महबूब मुझसे मिलकर ऐसे पेश आये
जैसे उनकी रूह का मैं, खोया हिस्सा था।

तश्नगी मेरे दिल की कभी खत्म नहीं हुई
जाने आबे हयात का वह कैसा दरिया था।

मिलता नहीं कुछ उसकी रहमत से ज्यादा
मेरा तो सदा से बस एक यही नज़रिया था।

मेरी बंदगी भी दुनिया-ए-मिसाल हो गई
मेरे मशहूर होने का, जैसे वह ज़रिया था।

२.

अपनी तस्वीर ख़ुद ही बनाना सीखो
अपनी सोई तक़दीर को जगाना सीखो।

दुनिया को फुरसत नहीं है, ज़रा भी
अपनी पीठ, ख़ुद ही थपथपाना सीखो।

मुश्किलें तो हर क़दम पर ही आएँगी
हौसलों को बस, बुलंद बनाना सीखो।

गिर गये तो मजाक बनाएगी दुनिया
इसे अपने क़दमों पर झुकाना सीखो।

खुशियाँ रास्ते पर पड़ी मिल जाएँगी
अपने जश्न, ख़ुद ही मनाना सीखो।

दुनियादारी, कभी खत्म नहीं होगी
ज़िंदादिली से इसे भी निभाना सीखो।

३.

जाने को थे कि, तभी बरसात हो गई
खुलके दिल की दिल से फिर बात हो गई।

चाँद भी झांकता रहा, बादलों की ओट से
कितनी ख़ुशनुमा,वही फिर रात हो गई।

तश्नगी पहुँच गई लबों की जाम तक
बेख़ुदी ही रूह की भी सौगात हो गई।

जुल्फें तराशता रहा फिर मैं भी शौक़ से
कुछ तो, नई सी यह करामात हो गई।

दिल ने तमन्ना की थी जिसकी बरसों से
बड़ी ही हसीन वो एक मुलाक़ात हो गई।

४.

पैगाम मेरा लेकर जो बादे सबा गई
सुनते हैं नमी आँख में उनके भी आ गई।

मैं आईने के सामने पहुँची जिस घडी
मेरी बुराई साफ़ नज़र मुझको आ गई।

एक मैकदा सा बंद था उसकी निगाह में
मदहोश कर गई मुझे बेखुद बना गई।

५.

मैख़ाने में जरा कभी आकर तो देखिये
एक बार ज़ाम लब से लगाकर तो देखिये।

दुनिया को तुमने अपना बनाया तो है मगर
हमको भी कभी अपना बनाकर तो देखिये।

तुम हाले दिल पे मेरे हंसोगे न फिर कभी
पहले किसी से दिल को लगाकर तो देखिये।

जिसकी तुम्हे तलाश है मिल जायेगा तुम्हे
चाहत में उसकी खुद को मिटाकर तो देखिये।

फिर होश में न आओगे दावा है ये मेरा
उनकी नज़र से नज़र मिलाकर तो देखिये।

६.

मौसम कभी मुक़द्दर को मनाने में लगे हैं
मुद्दत से हम खुद को बचाने में लगे हैं।

कुँए का पानी रास आया नहीं जिनको
वो गाँव छोड़ के शहर जाने में लगे हैं।

हमें दोस्ती निभाते सदियाँ गुज़र गई
वो दोस्ती के दुखड़े सुनाने में लगे हैं।

बात का खुलासा होता भी तो कैसे
सब हैं कि नई गाँठ लगाने में लगे हैं।

फ़िराक़ मुझे जबसे लगने लगा अज़ीज़
वो मुझे मुहब्बत सिखाने में लगे हैं।

यकीनन चेहरा उनका बड़ा खुबसूरत है
उस पर भी नया चेहरा चढ़ाने में लगे हैं।

मुझसे न पूछा क्या है तमन्ना कभी मेरी
बस वो अपना रुतबा बढ़ाने में लगे हैं।

७.


पुराने किसी ज़ख्म का खुरंड उतर गया
दिल का सारा दर्द निगाहों में भर गया।

धुंआ बाहर निकला तब मालूम ये हुआ
जिगर तक जलाकर वो राख़ कर गया।

एक अज़ब सा जादू था हसीन आँखों में
तमाशा बनकर चारों सू बिखर गया।

तस्वीर जो मुझ से बात करती थी सदा
गरूर में उसके भी नया रंग भर गया।

लगने लगा डर मुझे आईने से भी अब
धुंधला मेरा अक्स इस क़दर कर गया।

दरीचा खुला होता तो यह देख लेता मैं
नसीब मेरा मुझे छोड़ कर किधर गया।

चिराग उम्मीदों का दुबारा न जलेगा
निशानियाँ ऐसी कुछ वो नाम कर गया।

८.

हवा से न कहना, वो सब को बता देगी
तेरा हर ज़ख्म दुनिया को दिखा देगी।

तू डूबा हुआ होगा अपने गम में कहीं
वो जमाने भर में बहुत शोर मचा देगी।

चाहना उसे दिल से एक फासला रखकर
शुहरत बिगड़ गई तो हस्ती मिटा देगी।

तू दरिया प्यार का है, वो चाँद सूरत है
जिंदगी हर घडी तेरे होश उड़ा देगी।

मौत ने आना है, वो आएगी भी जरूर
फैसला भी अपना एकदम ही सुना देगी।

नादान है बहुत तू ,ये दुनिया शन्शाह है
जायेगा खाली हाथ तुझे ऐसा बना देगी।

हफ्तों, महीनों, सालों की तो बात न कर
दुनिया तेरे जाते तेरा किस्सा भुला देगी।