१.
ख़्वाब देखता हूँ गुलशन हरा-हरा है
हर फूल और पौधा लेकिन डरा डरा है
अफ़सोस मेरे यारों ,सवाल पर यही है
देश लाचारी से क्यों इस क़दर भरा है
सोचता रहता हूँ, तनहा कभी कभी मैं
देश का ये सिक्का खोटा या खरा है
पहुंचा दिया कैसे मुकाम पे हालत ने
शंका से भर गया हूँ,यकीन भी ज़रा है
इसकी टांग खींचे या उसकी टांग खींचे
इंसान सबके अंदर रहता मरा मरा है
है इतनी समस्यायें,हो बाढ़ जैसे आई
हल निकालने में हर कोई मसखरा है
२.
ख़याली भीड़ में घिरा-घिरा सा लगता है
खुद अपने से बेगाना हुआ सा लगता है
घूम आया है वो हर-शहर बेख़ौफ़ मगर
तेरी गलियों में क्यूँ डरा-डरा सा लगता है
खूब समझाया ज़िन्दगी ने तज़ुरबों से मुझे
कहीं पे दिल मुझे सहमा हुआ सा लगता है
हर इक ग़मनाक फ़साने का अंजाम मुझे
कभी घटा हुआ, कहा-सुना सा लगता है
काले बादल जो उठे हैं, वो बारिश के नहीं
कहीं पे आग लगी है, धुंआ सा लगता है
प्यास इसी जगह क्यूं तेज़ हुए जाती है
कहीं छिपा हुआ, मुझको कुआँ सा लगता है
ऐसे बिगड़े हुए हालत, और अपने हाथों में
लाये मरहम,वो मुझे झुनझुना सा लगता है
हर एक शख्स का यक़ीं लगा अधूरा है
हर एक दोस्त यहां बदगुमां सा लगता है
उनकी आमद से ज्यूँ ही हम बाख़बर हुए
अन्दर से भरभराये हम तितर बितर हुए
मेरी फ़ितरत में मुझे ये कमी हरदम दिखी
जो पल भर अपने हुए, वो उम्र भर हुए
ये चाँद, ये सूरज ये, अन्धेरा, ये उजाला
कभी ये इधर हुए तो कभी वो उधर हुए
किसकी निगाह फ़िर गई ये तो पता नहीं
लेकिन हमारे शेरो सुखन बेअसर हुए
बस,कुछ दीवारें तोड़ के आने की बात थी,
खंडहर जहाँ के सारे, अब हमारे घर हुए
लगता है परिंदों को,फिर अंदेशा हो गया
तैयार उड़ानों के लिए बालोपर हुए
दिल का मेरे कोना कोई सूना तो हुआ है
ऐसा भी नहीं है कि यारों, दरबदर हुए
करवट कोई जमाना, लेने को है शायद
जागे हुए लगे सभी , यूँ कि शशर हुए
इमानो वफ़ा, रखें न रखें, उनका फैसला
हम तो भाई कह के यारों बेखबर हुए