१.
कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो
मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सेहर न हो
वो बड़ा रहीमो-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ, तो दुआ में मेरी असर न हो
मेरे बाजुओं में थकी-थकी, अभी महवे-ख्वाब है चाँदनी
न उठे सितारों की पालकी, अभी आहटों का गुज़र न हो
कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब् के फूल को चूम के
यूँही साथ-साथ चलें सदा, कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो
ये ग़ज़ल कि जैसे हिरन की आँख में पिछली रात की चाँदनी
न बुझे खराबे की रोशनी, कभी बे-चराग़ ये घर न हो
मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूँ मैं, कि बिछड़ने का कभी डर न हो
२.
अभी इस तरफ़ न निगाह कर, मैं ग़ज़ल की पलकें संवार लूँ
मेरा लफ्ज़-लफ्ज़ हो आइना, तुझे आइने में उतार लूँ
मैं तमाम दिन का थका हुआ, तू तमाम शब् का जगा हुआ
ज़रा ठहर जा इसी मोड़ पर, तेरे साथ शाम गुज़ार लूँ
अगर आस्मां की नुमाइशों में, मुझे भी इज़ने-क़याम हो
तो मैं मोतियों की दूकान से, तेरी बालियाँ, तेरे हार लूँ
कई अजनबी तेरी राह के, मेरे पास से यूँ गुज़र गए
जिन्हें देख कर ये तड़प हुई, तेरा नाम ले के पुकार लूँ
३.
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में
और जाम टूटेंगे इस शराबखाने में
मौसमों के आने में मौसमों के जाने में
हर धड़कते पत्थर को लोग दिल समझते हैं
उम्र बीत जाती है दिल को दिल बनाने में
फाख्ता की मजबूरी ये भी कह नहीं सकती
कौन सांप रखता है उसके आशियाने में
दूसरी कोई लड़की जिंदगी में आयेगी
कितनी देर लागती है उसको भूल जाने में
४.
मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहोत तलाश किया कोई आदमी न मिला
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला
बहोत अजीब है ये कुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला
खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैं ने
बस एक शख्स को माँगा मुझे वही न मिला
५.
यूँही बेसबब न फिरा करो, कोई शाम घर भी रहा करो
वो ग़ज़ल की एक किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आएगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो
मुझे इश्तेहार सी लगती हैं, ये मुहब्बतों की कहानियां
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सूना नहीं वो कहा करो
कभी हुस्ने-पर्दानशीं भी हो, ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन संवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो
ये खिज़ां की ज़र्द सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो
नहीं बेहिजाब वो चाँद सा, कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गर्मिए-शौक़ से, बड़ी देर तक न तका करो
६.
आँसूओं की जहाँ पायमाली रही
ऐसी बस्ती चराग़ों से ख़ाली रही
दुश्मनों की तरह उस से लड़ते रहे
अपनी चाहत भी कितनी निराली रही
जब कभी भी तुम्हारा ख़याल आ गया
फिर कई रोज़ तक बेख़याली रही
लब तरसते रहे इक हँसी के लिये
मेरी कश्ती मुसाफ़िर से ख़ाली रही
चाँद तारे सभी हम-सफ़र थे मगर
ज़िन्दगी रात थी रात काली रही
मेरे सीने पे ख़ुशबू ने सर रख दिया
मेरी बाँहों में फूलों की डाली रही
७.
ये चाँदनी भी जिन को छूते हुए डरती है
दुनिया उंहीं फूलों कोपैरों से मसलती है
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख दे
यूँ याद तेरी शब भर सीने में सुलगती है
आ जाता है ख़ुद खेँच कर दिल सीने से पटरी पर
जब रात की सरहद से इक रेल गुज़रती है
आँसू कभी पलकों पर ता देर नहीं रुकते
उड़ जाते हैं उए पंछी जब शाख़ लचकती है
ख़ुश रंग परिंदों के लौट आने के दिन आये
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती
८.
वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे
चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे
इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे
मैं समझता था मुहब्बत की ज़बाँ ख़ुश्बू है
फूल से लोग इसे ख़ूब समझते होंगे
भूल कर अपना ज़माना ये ज़माने वाले
आज के प्यार को मायूब समझते होंगे
९.
अदब की हद में हूं मैं बेअदब नहीं होता।
तुम्हारा तजिकरा अब रोज़-ओ-शब नहीं होता।
कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यूं ही आंखें,
उदास होने का कोई सबब नहीं होता।
कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस,
ग़रीब होने का एहसास अब नहीं होता।
मैं वालिदैन को ये बात कैसे समझाउं,
मोहब्बतों में हबस-ओ-नसब नहीं होता।
वहां के लोग बड़े दिलफरेब होते हैं,
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता।
मैं इस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूं,
जहां कभी भी खुदा का ग़ज़ब नहीं होता।
तुम्हारा तजिकरा अब रोज़-ओ-शब नहीं होता।
कभी-कभी तो छलक पड़ती हैं यूं ही आंखें,
उदास होने का कोई सबब नहीं होता।
कई अमीरों की महरूमियां न पूछ कि बस,
ग़रीब होने का एहसास अब नहीं होता।
मैं वालिदैन को ये बात कैसे समझाउं,
मोहब्बतों में हबस-ओ-नसब नहीं होता।
वहां के लोग बड़े दिलफरेब होते हैं,
मेरा बहकना भी कोई अजब नहीं होता।
मैं इस ज़मीन का दीदार करना चाहता हूं,
जहां कभी भी खुदा का ग़ज़ब नहीं होता।
१०.
कोई लश्कर है कि बढ़ते हुए गम आते हैं
शाम के साये बहुत तेज कदम आते हैं
दिल वो दरवेश है जो आंख उठाता ही नहीं
उसके दरवाजे पर सौ अहल-ए-करम आते हैं
मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने, कभी चांदी के कलम आते हैं
मैंने दो-चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीके मुझे कम आते हैं
खूबसूरत-सा कोई हादसा आंखों में लिए
घर की दहलीज पर डरते हुए हम आते हैं
शाम के साये बहुत तेज कदम आते हैं
दिल वो दरवेश है जो आंख उठाता ही नहीं
उसके दरवाजे पर सौ अहल-ए-करम आते हैं
मुझसे क्या बात लिखानी है कि अब मेरे लिए
कभी सोने, कभी चांदी के कलम आते हैं
मैंने दो-चार किताबें तो पढ़ी हैं लेकिन
शहर के तौर-तरीके मुझे कम आते हैं
खूबसूरत-सा कोई हादसा आंखों में लिए
घर की दहलीज पर डरते हुए हम आते हैं
११.
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था।
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों
बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहाँ दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता
तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था।
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है
१२.
होंठो पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समंदर के खजाने नहीं आते पलकें भी चमक उठती है सोते में हमारी
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते
दिल उजड़ी हुयी एक सराय की तरह है
अब लोग यहाँ रात बिताने नहीं आते
क्या सोच कर आये हो मुहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनो के उठाने नहीं आते
अहबाब भी गैरो की अदा सीख गए है
आते है मगर दिल को दुखाने नहीं आते