परिचय :
जन्म : १५ अगस्त,अमेठी, उत्तरप्रदेश
शिक्षा : एम .ए (हिंदी साहित्य ) नेट जे .आर .एफ
ब्लॉग : http://sanjushabdita.blogspot.ae/
खयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं
लहर तडपी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल
ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ भी थीं
बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से
दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं
कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को
चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं
भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे वक़्त को हमदम
नहीं भूले हैं जो अब तक, वही बेचैनियाँ भी थीं
अभी तक याद है वो कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी औ दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थीं
2-
सिर्फ कानों सुना नहीं जाता
लब से सब कुछ कहा नहीं जाता
दर्द कि इन्तहां हुई यारों
मुझसे अब यूँ सहा नहीं जाता
देश का हाल जो हुआ है अब
चुप तो मुझसे रहा नहीं जाता
चुन के मारो सभी दरिन्दों को
माफ इनको किया नहीं जाता
वो खता बार- बार करता है
फिर सज़ा क्यूँ दिया नहीं जाता
है भला क्या तेरी परेशानी
बावफ़ा जो हुआ नहीं जाता
कैसे वादा निभाऊ जीने का
तेरे बिन अब जिया नहीं जाता
3-
हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे
यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे
कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे
दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे
तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे
चल दिये हैं सफ़र में अकेले ही हम
साथ अपने ग़मों को बुलाते रहे
रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रह
४-
वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है
जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है
राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है
मैं उसे रोज़ दुवा देती हूँ
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है
उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है
5
ये इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं
हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं
बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं
नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते
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१.
हुए रुखसत दिले -नादां की ही कुछ सिसकियाँ भी थीखयालों में वही पहली नज़र की मस्तियाँ भी थीं
लहर तडपी थी हर इक याद पे मचला भी था साहिल
ज़माने की वही रंजिश में डूबी किश्तियाँ भी थीं
बिखरती वो घड़ी बीती न जाने कितनी मुश्किल से
दबी ही थी जो सीने में क़सक की बिजलियाँ भी थीं
कभी कहते थे वो भी उम्र भर यूँ साथ चलने को
चलीं हैं साथ जो अब तक वही गमगीनियाँ भी थीं
भुलाकर यूँ न जी पायेंगे गुजरे वक़्त को हमदम
नहीं भूले हैं जो अब तक, वही बेचैनियाँ भी थीं
अभी तक याद है वो कौन सा लम्हा हुआ कातिल
नज़र खामोश थी औ दिल की कुछ मजबूरियाँ भी थीं
2-
सिर्फ कानों सुना नहीं जाता
लब से सब कुछ कहा नहीं जाता
दर्द कि इन्तहां हुई यारों
मुझसे अब यूँ सहा नहीं जाता
देश का हाल जो हुआ है अब
चुप तो मुझसे रहा नहीं जाता
चुन के मारो सभी दरिन्दों को
माफ इनको किया नहीं जाता
वो खता बार- बार करता है
फिर सज़ा क्यूँ दिया नहीं जाता
है भला क्या तेरी परेशानी
बावफ़ा जो हुआ नहीं जाता
कैसे वादा निभाऊ जीने का
तेरे बिन अब जिया नहीं जाता
3-
हँसते मौसम यूँ ही आते जाते रहे
गम के मौसम में हम मुस्कुराते रहे
यादें परछाइयाँ बन गयीं आजकल
हमसफ़र हम उन्हें ही बताते रहे
कल तेरा नाम आया था होंठों पे यूँ
जैसे हम गैर पर हक़ जताते रहे
दिल के ज़ख्मों को वो सिल तो देता मगर
हम ही थे जो उसे आजमाते रहे
तल्ख़ बातें ही अब बन गयीं रहनुमाँ
मीठे किस्से हमें बस रुलाते रहे
चल दिये हैं सफ़र में अकेले ही हम
साथ अपने ग़मों को बुलाते रहे
रूठ कर तुम गये सारा जग ले गये
चाँद तारे भी हमको चिढ़ाते रह
४-
वो मेरी रूह मसल देता है
साँस लेने में दखल देता है
जाने आदत भी लगी क्या उसको
खुद की ही बात बदल देता है
राज़ की बात उसे मत कहना
बाद में राज़ उगल देता है
मैं उसे रोज़ दुवा देती हूँ
वो मुझे रोज़ अज़ल देता है
उसको मालूम नहीं, गम में भी
वो मुझे रोज़ ग़ज़ल देता है
5
ये इश्क सुन तिरे हवाले ताज करते हैं
कि प्यार कल भी था तुझी से आज करते हैं
हुकूमतों का शोख़ रंग यह भी है यारों
कि हम जहाँ नहीं दिलों पे राज करते हैं
बहुत लगाव है हमें वतन की मिटटी से
इसी पे जान दें इसी पे नाज़ करते हैं
नरम दिली नहीं समझते देश के दुश्मन
चलो कि आज हम गरम मिज़ाज करते