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सन्देश

मुद्दतें गुज़री तेरी याद भी आई न हमें,
और हम भूल गये हों तुझे ऐसा भी नहीं
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गुरुवार, 6 अगस्त 2015

नरेन्द्र कुमार-कविताये

परिचय:
नरेन्द्र कुमार 
पिता - श्री राजनाथ सिंह 
माता - स्वर्गीय श्रीमती निर्मला देवी 
ग्राम -बचरी (तापा)
पोस्ट  - अखगाँव 
थाना - सन्देश 
अंचल - सन्देश 
जिला - भोजपुर (आरा)
राज्य - बिहार 
जन्मतिथि - ०४ जनवरी १९८४ 
शिक्षा - स्नातकोत्तर (NOU)
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धर्म निरपेक्ष (व्यंग)

मेरा कोई धर्म नहीं
मेरा कोई कर्म नहीं
भ्रष्टाचार फैलता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाता हूँ।

मेरा कोई जोड़ नहीं
मेरा कोई तोड़ नहीं
साठ-गाठ बैठता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाता हूँ।

मेरा कोई एक रूप नहीं
मेरा कोई एक रंग नहीं
समया अनुसार भेष बनता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाता हूँ।

विकाश से मेरा नाता नहीं
शान्ति फैलाना हमें आता नहीं
दंगा फसाद करता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाता हूँ।

सत्ता से दूर रह सकता नहीं
कुछ अच्छा कर सकता नहीं
हर कार्य में जुगाड़ लगता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाता हूँ।

सच बोलने हमें आता नहीं
झूठ बोलने में मेरा कुछ जाता नहीं
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई को आपस में लड़ता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाता हूँ।

मैं धर्म निरपेक्ष नहीं
मैं कर्म निरपेक्ष हूँ
साम्प्रदाइकता के गर्म तावा पर
अपनी स्वार्थ की रोटी पकता हूँ
धर्म निरपेक्ष कहलाता हूँ।
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कलयुगी बेटा

कलयुगी बेटों का नरेन्द्र क्या करू बखान
ए अपने मुख मियाँ मिठू
गाते हैं अपना गुण-गान
बनते हैं महान।

कहते हैं,मैं वो पुत्र नहीं
जो आपको कंधो पर घुमाऊ
आपके आदेश से वन को जाऊँ
आपको कारा से छुड़ाऊ।

मैं वो हूँ
जो सभी से अपना पिछा छुड़ाऊ
कलेजे पर तान बन्दुक मैं
पैतृक सम्पति में हिस्सा पाऊँ।

अपने स्वार्थ के लिए
न्यालय के शरण में जाऊँ
अपना कर्त्वय भूल
कानूनी हक जताऊ।

वहाँ भी हमें जब लगे घाटा
पुरी सम्पति को न्यालय ने
भाई-बहन माता-पिता में बराबर बट्टा
वहाँ से भी मैं कन्नी कटा।

मैं बनूंगा देश का नेता
झुठ मेरे नश-नश में स्वार्थ मेरा पेशा
गया जमाना आज्ञाकारिता का
मैं हूँ कलयुगी बेटा
मैं हूँ कलयुगी बेटा।
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* फूल और माली *

प्रातः काल का वेला था 
फूलों संग बाग में 
माली अकेला था ,
मनोहारी दृश्य देख वह 
मन ही मन हरसाया 
कापता हुआ हाथ 
वह अपना
उसके तरफ बढाया। 

फूल झुझलाई भव चढ़ाई 
माली संग आँख मिलाई 
और बोली चिल्लाकर ,
"मरना है तो मारो
कही और जा कर "। 

माली रुक कर 
प्यार से बोला 
"क्या तुम्हें नहीं पता ,
तुम्हें इस योग्य बनाने में 
हमने कितना खुन पसीना बहाया "। 


फूल बोली इठलाकर कर 
"यह भाग्य दोश है 
पूर्व जन्म का योग है ,
मैं जो भी , स्वयं हूँ 
किसी के गले में किसी के शिस पर 
या 
देवों के चरण में रहती हूँ ,
सभी हमें पाना चाहते 
अपना प्यार जताना चाहते "। 

माली से रहा नहीं गया ,
फूल को फिर समझाया। 
"मैं तेरी उचित पोषण
नहीं करता ,
चेहरा तेरा मुरझाया रहता ,
समय से पहले तुझे 
तोड़ देता,
यु हीं झड़ जाती 
अपना संतती भी 
नहीं बढ़ा पाती ,
सर-गल किसी कोने में 
बदबु फैलाती। 
यह समय की मार है 
तुझे पालने को मेरा दिल 
लचार है। "

मैं दूर खड़ा था 
सोचने को मजबुर पड़ा था ,
मेरा दिल कहा 
यह समय की मार है 
जो बाग-बगीच लगाया 
उसी को बाहर बिठाया ,
हर माली का यही हाल 
सभी फूल बजाय गाल ,
अपना मानना है 
पहचान बनाओ 
होने का एहसास दिलाओ। 

आप जानना नहीं चाहेंगे ?
वह माली और वह फूल कौन ,
मैं आपको बता दु ,
हर माँ-बाप माली 
उनके बच्चे फूल 
यही है 
जीवन का उसूल ।
************
मेरा देश

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

भिन्न-भिन्न लोग इसे
भिन्न-भिन्न नाम से पुकारे
कोई कहे हिन्दुस्तान
कोई आर्यावर्त
कोई जम्बूदीप
कोई इंडिया पुकारे।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

सुनहड़ी इसकी गाथा
ज्ञान विज्ञान का यह ज्ञाता
धर्म में यहाँ की पताका फहराता
शांति दूत यह कहलाता।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

धरती का स्वर्ग है यहाँ
ऋर्षि-मुन्नी जन्मे जहाँ,
देवी-देवता जहाँ चाहे जन्म
जहाँ प्रधान है कर्म।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

जहाँ की मिट्टी है सोना
जहाँ प्रचलित है जादू टोना
जहाँ भेष-भूषा और भाषा है अनेक
जहाँ के लोग है नेक।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

जिसने दुनियाँ को गणना सिखाया
ज्योतिष और खगोल शास्त्र पढ़ाया
दुनियाँ को शान्ति सन्देश सुनाया
योग्यता से वह विश्व गुरु कहलाया।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

चिकित्सा में आयुर्वेद महान
जो करे जगत कल्याण
जिसका धर्म और भाषा सबसे प्राचीन
हर सभ्यता में जिसका चिन्ह।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

जहाँ चन्द्रगुप्त और अशोक महान
जहाँ पंचतंत्र चाणक्य विदुर की नीति
जहाँ गीता का ज्ञान।
जहाँ वेद रामायण महाभारत जैसे माहाकाब्य
जहाँ कालिदास जैसे नाट्यकार।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।

जहाँ रबीन्द्रनाथ बंकिमचन्द्र
प्रेमचन्द्र जैसे रचनाकार
जहाँ पंत भरततेन्दू हरिचन्द
जहाँ पन्ना जौसा आया
जिसकी कथा सुन फट जाए काया।

मेरा देश है भारत
भरत जिसके नरेश
मेरा देश।
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नारी तेरी नारीत्व

नारी तेरी नारीत्व नहीं किसी का मोहताज।

तु ही दुर्गा तू ही काली
तु ही लक्ष्मी तू ही सरस्वती
तु है माया तू महामाया
तुझ में यह सृष्टी समाया
तुझे कोई समझ न पाया,
नर देव दानव और गन्धर्व
सब को चाहिए तेरा वर
फिर तुम क्यू इतना लचर
नारी तेरी नारीत्व नहीं किसी का मोहताज।

तु माँ है तू ही बहन
तु ही पत्नी तू ही प्रेमिका
हर सफल पुरुष के पिछे
तेरी वाणी और वरद हस्त है
फिर तु क्यू इतना अस्त ब्यस्त है
तु अपनी शक्ति को पहचान
नरेन्द्र का करे तेरा बखान
नारी तेरी नारीत्व नहीं किसी का मोहताज।

हर युद्ध में तुने हाथ बटाया
धर्म युद्ध हो या गृह युद्ध
स्वतंत्रा संग्राम हो या राजपाठ कि हो बात
अच्छे-अच्छो को तुने दिया मात
कहो तो गिना दु मै सैकड़ो नाम
फिर क्यू हो तुम बेकाम
नारी तेरी नारीत्व नहीं किसी का मोहताज।

तुझ में दृढ़ता तुझ में वीरता तु है दयावान
तेरी ह्रिदय बहुत बड़ी है
तु करे सब का कल्याण,
पिता पुत्र हो या पति
सभी के लिए है तु मूल्यवान
जिस घर में तु नहीं वह घर है नरक समान
नारी तेरी नारीत्व नहीं किसी का मोहताज।

तू आधा नहीं अधूरा नहीं
तेरे बिना ए जगत पुरा नहीं
तेरे बिना बेकार है यह ब्रह्यमाण्ड
नारी तु जाग अपनी तागत पहचान
न कर तु किसी से आशा
दिखा दे तु अपनी चमत्कार
नारी तेरी नारीत्व नहीं किसी का मोहताज।

नारी तू अब जाग अपनी तगत पहचान
न कर तु किसी का अनुकरण
दे तु सब को अपना शरण,
सभी गुणों में अग्रणी है तु
तु ही जननी तु ही करनी
न कर तू किसी से स्पर्धा
सभी का है तुझ में सर्धा
नरेन्द्र कितना उठाए पर्दा
दुनियाँ को न कर तु बेपर्दा
नारी तेरी नारीत्व नहीं किसी का मोहताज।


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*भला बुरा *

कौन भला है
कौन बुरा
समय की है
यह बात
नीति रीती बदल जाती
देख लोगो की
औकात।

फूल भली है
शूल बुरा
समय की है
यह ताक
एक समय
नागफनी भी
आती है काज।

लोग भले हैं
जाती बुरी
सोच की है यह विसात
बिन जिनके लोग
पाख न हो
फिर क्यों करे
ए ऐसी बात।
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*जी चाहता है सब दान कर दूँ *

नजर दान कर दूँ
जिगर दान कर दूँ
ह्रिदय फेफङा किडनी
सब अंग दान कर दूँ ,

दान करने में मेरा कुछ
जाता नहीं
उल्टा नाम प्रशन्सा पाता यही
अंगो का देख भाल का जीमा
चिकित्सालय उठाता
फिर यह पुण्य कार्य मुझे क्यों नहीं भाता,

मन सोचता मस्तिस्क तर्क करता
आज का हलात देख
अपने आप पर दंश भरता,

नजर देदोगे नजरियां कैसे दोगे
पाता नहीं इन से वह क्या-क्या देखेगा
उल्टी-सुल्टी दृश्यों से इसे सेकेगा ,

जिगर दे दोगे वो जान कैसे दोगे
अच्छे-बुरे का पहचान कैसे दोगे ,

तुम्हारा ह्रिदय दूसरे के शरीर धड़केगा
कही यह धड़कन किसी का धड़कन तो नहीं रोकेगा ,

तुम्हारी फेफङो से वह साँस लेगा
इन्ही सांसो से किसी और का साँस तो न रोकेगा ,

इन सब तर्को से
मै झल्ला जाता और अपने आप से कहता
“कुछ के चलते सभी को दोशी क्यों ठहराए
लोगो के चकर में अपनी मनुषता (मानवता)
क्यों भूल जाए”।

नजर दान कर दूँ
जिगर दान कर दूँ
ह्रिदय फेफङा किडनी
सब अंग दान कर दूँ ,

जीवन में संचय नरेन्द्र
ज्ञान धन परिश्रम
दान कर दूँ।
************
बुढ़ापा 

हमें बुढा न कहो
बुढ़ापे से लगता है डर,

आँख देखता नहीं
कान सुनता नहीं
हाथ पाव कांपे थर-थर,

हमें बुढा न कहो
बुढ़ापे से लगता है डर,

बाल सफेद हो जाते
दात ढेर हो जाते
बदन में रहता है दर्द,

हमें बुढा न कहो
बुढ़ापे से लगता है डर,

कोई हमारा सुनता नहीं
हमारी कृति को गुणता नहीं
सभी अपने में हैं अस्त-व्यस्त ,

हमें बुढा न कहो
बुढ़ापे से लगता है डर,

त्वचा सिकुड़ है जाती
चहरे का रौनक उड़ है जाती
बच्चे कहते क्यों करते हैं टर्र-टर्र,

हमें बुढा न कहो
बुढ़ापे से लगता है डर,

छोटे कहते आपने क्या किया
अपने लिए हैं सिर्फ जीया
साडी समस्याओं का हैं जड़
छुटकारा कब देगा
आपसे हमें ईश्वर ,

हमें बुढा न कहो
बुढ़ापे से लगता है डर।


************
* लड़की *
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है ,
तेरा जन्मना अभिशाप नहीं
तू ही तो गृहणी है।


तू है दूर्गा तू है काली
तू ही लक्ष्मी तू हीं सरस्वती ,
तू महामाया सब तेरी माया
सम्पूर्ण जगत में तु ही छाया ,
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।

तू ही इष्ट तू हीं नूर
तुझ से कोई नहीं रह सकता दूर ,
तू ही शुन्य तेरे बिना सब सून
दायें बैठे मान बढ़ाए बाएँ बैठे मान घटाए ,
अच्छे-अच्छो को धुल चटाए
तेरी नीति कोई समझ नहीं पाए ।
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।

हर कामयाबी में तेरा हाथ
तेरे बैगर न पुरूष का पुरूषार्थ,
तू अमिना तू हीं मरियम
तू हीं सिता गीता और सबिता।

नरेन्द्र इनका क्या करे बखान
पढ़ लो इनका इतिहास ,
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।

सभी पुरूषों को तूने जन्म दिया
इस सृष्टी को
सभ्यता संस्कृती और कर्म दिया ,
गम्भीरता सहनशीलता है तेरा गुण
इस लिए लोग करते हैं
तेरे साथ भूल ,
प्रेम करूणा का सागर है तू
सभी गुणों में आगर है तू ,
लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।

लड़की है तो क्या हुँआ
तू जगत की जननी है।
************
*मैं आम आदमी हूँ *

मैं न नेता हूँ
न अभिनेता हूँ
न मैं शासक हूँ
न प्रशासक हूँ
अपनी नहीं है है
कोई पहचान।

सभी के बीच में मैं रहूँ
दुःख-दर्द सब सहूँ
किलत में जीने कि
हमें आदत पड़ी
सभी करते हैं मेरा
'उपकार'
शासक प्रशासक या हो
'सरकार'
न्यासी हो या सेठ साहूकार।

मेरी सुविधा के लिए
नेता वोट मांगे
मेरे नाम से पार्टी बनाए
न्यासी न्यास चलाए
दान दे सेठ-साहूकार।

फिर भी मैं जस का तस रहा
न बन सका मेरा कोई
अलग पहचान,
जब किसी से टकराऊ
तो लोग बोलें आम है
है न कोई खास
आप सोचते होंगे मैं कौन हूँ ?
मैं आम आदमी हूँ
मैं आम आदमी हूँ।
************