नरेश शांडिल्य
ए-5, मनसाराम पार्क,
संडे बाज़ार रोड
उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
ए-5, मनसाराम पार्क,
संडे बाज़ार रोड
उत्तम नगर, नई दिल्ली-110059
जागा लाखों करवटें, भीगा अश्क हज़ार
तब जाकर मैंने किए,
काग़ज काले चार.
*
छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक
सागर
जैसा स्वाद है, तू चखकर तो देख.
*
मैं खुश हूँ औज़ार बन, तू ही बन हथियार
वक़्त करेगा फ़ैसला,
कौन हुआ बेकार.
*
तू पत्थर की ऐंठ है, मैं पानी की लोच
तेरी अपनी सोच है, मेरी
अपनी सोच.
*
मैं ही मैं का आर है, मैं ही मैं का पार
मैं को पाना है अगर,
तो इस मैं को मार.
*
ख़ुद में ही जब है ख़ुदा, यहाँ-वहाँ क्यों जाऊँ
अपनी
पत्तल छोड़ कर, मैं जूठन क्यों खाउँ.
*
पाप न धोने जाऊँगा, मैं गंगा के तीर
मजहब अगर लकीर है, मैं
क्यों बनूँ फ़क़ीर.
*
सब-सा दिखना छोड़कर, ख़ुद-सा दिखना सीख
संभव है सब हों ग़लत,
बस तू ही हो ठीक.
*
ख़ाक जिया तू ज़िंदगी, अगर न छानी ख़ाक
काँटे बिना गुलाब की,
क्या शेखी क्या धाक.
*
बुझा-बुझा सीना लिए, जीना है बेकार
लोहा केवल भार है, अगर
नहीं है धार.
*
सोने-चाँदी से मढ़ी, रख अपनी ठकुरात
मेरे देवी-देवता,
काग़ज-क़लम-दवात.
*
अपनी-अपनी पीर का, अपना-अपना पीर
तुलसी की अपनी जगह, अपनी
जगह कबीर.
*
वो निखरा जिसने सहा, पत्थर-पानी-घाम
वन-वन अगर न छानते, राम
न बनते राम.
*
पिंजरे से लड़ते हुए, टूटे हैं जो पंख
यही बनेंगे एक दिन,
आज़ादी के शंख.
*
जुगनू बोला चाँद से, उलझ न यूँ बेकार
मैंने अपनी रौशनी, पाई
नहीं उधार.
*
बस मौला ज़्यादा नहीं, कर इतनी औक़ात
सर ऊँचा कर कह सकूँ,
मैं मानुष की ज़ात.
*
पानी में उतरें चलो, हो जाएगी माप
किस मिट्टी के हम बने, किस
मिट्टी के आप.
*
अपने को ज़िंदा रखो, कुछ पानी कुछ आग
बिन पानी बिन आग के,
क्या जीवन में राग.
*
शबरी जैसी आस रख, शबरी जैसी प्यास
चल कर आएगा कुआँ, ख़ुद ही
तेरे पास.
*
जो निकला परवाज़ पर, उस पर तनी गुलेल
यही जगत का क़ायदा, यही
जगत का खेल.
*
कटे हुए हर पेड़ से, चीखा एक कबीर
मूरख कल को आज की, आरी से
मत चीर.
*
भूखी-नंगी झोंपड़ी, मन ही मन हैरान
पिछवाड़े किसने लिखा,
मेरा देश महान.
*
हर झंडा कपड़ा फ़क़त, हर नारा इक शोर
जिसको भी परखा वही,
औना-पौना चोर.
*
सब कुछ पलड़े पर चढ़ा, क्या नाता क्या प्यार
घर का आँगन भी
लगे, अब तो इक बाज़ार.
*
हम भी औरों की तरह, अगर रहेंगे मौन
जलते प्रश्नों के कहो,
उत्तर देगा कौन.
*
भोगा उसको भूल जा, होगा उसे विचार
गया-गया क्या रोय है, ढूँढ
नया आधार.
*
लौ से लौ को जोड़कर, लौ को बना मशाल
क्या होता है देख फिर,
अंधियारों का हाल.